📮बिदअत को पहचानिए
✍️तहरीर: शैख़ मक़बूल अहमद सलफ़ी हाफ़िज़ाहुल्लाह
✍🏻हिंदी मुतर्जिम: हसन फ़ुज़ैल
🕌अल्हम्दुलिल्लाह इस्लाम एक वाज़ेह और साफ़ सुथरा दीन है जिसकी तालीमात (शिक्षाएँ) और अहकाम रोशन दिन की तरह अयाँ-ओ-बयाँ (स्पष्ट और ज़ाहिर) हैं, मगर इस्लाम के नाम लिए जाने से सूफ़ियों और बिद'अतीयों ने इस साफ़ सुथरे दीन को जहां ग़ैर मुसलमानों की नज़र में बदनाम किया है, वहीं आम मुसलमानों पर भी इसे मुश्किल बना दिया है। जो असली दीन है उसे छोड़कर, इन बिदअतियों ने दीन में नई नई बिद'आत और ख़ुराफ़ात घड़ ली हैं और उन पर सख़्ती से अमल किया और अवाम को यक़ीन दिलाया कि यही असली दीन है, जो इस पर अमल करता है वह असल सुन्नी है और जो अमल नहीं करता है वह बिद'अती, मुर्तद और नबी का गुस्ताख़ है। العیاذ باللہ
🔈किस क़दर हैरानी और ताज्जुब की बात है कि असल दीन को पीछे पुश्त किया गया बल्कि असल दीन पर अमल करने वालों को बाग़ी, मुर्तद, गुस्ताख़ और बिद'अती कहा जाता है और दीन के नाम पर नई नई बिद'आत को असल दीन समझा जाता और बिद'अती ख़ुद को असल सुन्नी कहता है।
🗣️ख़ुर्द का नाम जुनूँ रख दिया, जुनूँ का ख़ुर्द-जो चाहे आपका हुस्न करिशमा साज़ करे
🏜️इस्लाम के लिए ख़तरात, ख़द्शात और नुक़सानात की बात जाए तो जो यहूद और नसारा नहीं कर सके, वो इन बिद'अतियों ने इस्लाम के लिए ख़तरात पैदा किये और दीन में नयी नयी बिद'अतें रिवाज कर दीं, इस्लाम के असल चेहरे को मस्ख़ किया। कुफ़्फ़ार और मुश्रिकीन मुसलमानों को नुक़सान पहुँचाने की कोशिश करते हैं जबकि बिद'अती असल इस्लाम को नुक़सान पहुँचा रहे हैं, इस लिहाज़ से बिद'अती इस्लाम के लिए सब से बड़ा ख़तरा है। इसी ख़तरे का एहसास करके आज सादा मुसलमानों को सलीस (आसान) अंदाज़ में बिद'अत समझाने की कोशिश कर रहा हूँ ताकि उन पर बिद'अत की हक़ीक़त मुनकशिफ़ (वाज़ेह) रहे और शायद किसी बिद'अती को भी समझ आ जाए और इस्लाम को नुक़सान पहुँचाने से बाज़ आ जाए या कम अज़ कम ख़ुद को नुक़सान से बचाए।
🖼️बिद'आत की एक लम्बी फ़ेहरिस्त (सूची) है, उन सब का नाम गिनना मुश्किल है। कुछ बिद'आत बहुत मशहूर और मारूफ़ हैं जिनसे बिद'अतियों की असली पहचान होती है, उन्हें बताकर उनकी हक़ीक़त बताने की कोशिश करूँगा। आप देखते हैं कि कुछ मुसलमान नबी का नाम आने पर अंगूठा चूमते हैं, अज़ान से पहले ख़ुद-साख़्ता दरूद पढ़ते हैं, फ़ातिहा ख़्वानी करते हैं, मीलाद मनाते हैं, मज़ारात पर उर्स और मेले लगाते हैं, जुलूस निकालते हैं, झंडियां लगाते हैं, क़ब्रों पर फूल और चादर चढ़ाते हैं, वहां अज़ान देते हैं, उनका तवाफ़ करते हैं, सजदा करते हैं और वहां नमाज़ और क़ुरआन पढ़ते हैं। इसी तरह ताज़िया मनाना, मुर्दों को पुकारना, ग़ैरुल्लाह का वसीला लगाना, ग़ैरुल्लाह की नज़र मानी करना, कुल, तीज्जा, सातवां, दसवां, इक्कीसवां, चहल्लुम, ग्यारहवीं मनाना, लिक्खी रोज़े, हज़ारी रोज़े, उम दाऊद की नमाज़, सलात अल-रग़ाइब, नमाज़ ग़ौसीया, ख़त्मे क़ादरीया, ज़फ़र सादिक़ के कुंडे, शब-ए-मेराज का जश्न, पीरों की बैअत, इमाम ज़ामिन और तावीज़ात अत्तारिया, नौहा ख़्वानी और सोग, बदशगूनी और नहूस्त और ख़ुद-साख़्ता औराद और वज़ाइफ (दरूद ग़ौसिया, दरूद ताज, दरूद तंजीना, दरूद लिक्खी वग़ैरह) उन बिदातियों के इमत्तियाज़ी अफ़'आल और अमल हैं। ये सब अमल और उन जैसे सैकड़ों अमल दीन के नाम पर बिद'अतियों की तरफ़ से ईजाद कर लिए गए हैं, इन्हीं को दीन समझा जाता है, इसी के गर्दान की ज़िंदगी घूमती है और यही सब कुछ करते करते बिद'अतियों की मौत आ जाती है।
🏜️मज़कूरा चंद बिद'आत के बाद अब आते हैं असल मुद्दे की तरफ़, वह यह है कि हमें कैसे पता चलेगा कि मज़कूरा सारे काम बिदअती हैं और एक बिदअती को कैसे समझाएंगे कि इन कामों से दूर रहो, यह जहन्नम में ले जाने वाले हैं? इसलिए पहले हम बिदअत की सही तारीफ़ (परिभाषा) देखेंगे और तारीफ़ भी शर'ई शरिया यानी मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ुबानी मालूम करेंगे। सय्यदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
مَن أَحْدَثَ في أَمْرِنَا هذا ما ليسَ فِيهِ، فَهو رَدٌّ (صحيح البخاري:2697،صحيح مسلم:1718،سنن أبي داود4606, سنن ابن ماجه:14,مشكوة المصابيح:140)
✨तर्जमा: जिसने हमारे दीन में अपनी तरफ़ से कोई ऐसा काम ईजाद किया जो दीन में नहीं है, तो वह रद्द है।
🗣️यही हदीस सहीह मुस्लिम में इस तरह मरवी है, सय्यदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
مَن عَمِلَ عَمَلًا ليسَ عليه أمْرُنا فَهو رَدٌّ(صحيح مسلم:1718)
✨तर्जमा:"जो शख़्स ऐसा काम करे जिसके लिए हमारा हुक्म न हो (यानि दीन में ऐसा अमल निकाले) तो वह मर्दूद है।
इस हदीस के बारे में इमाम नववी रहिमहुल्लाह लिखते हैं: यह हदीस इस्लाम के क़वाइद (क़ायदों) में से एक अज़ीम क़वाइद है और यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जामे अल-कलम में से है और यह बिदअत और नई ईजाद की तर्दीद में सरीह हदीस है। (शरह मुस्लिम लिल नववी (2/15 हदीस 1718))
🔥बिदअतीयो की बिदअत हदीस-ए-रसूल की कसौटी पर:
हदीस-ए-रसूल के पूरे अल्फ़ाज़ पर नज़र रखते हुए इमाम नववी रहिमहुल्लाह के कलाम के एतिबार से ग़ौर करते हैं कि यह हदीस किस तरह बिदअत की सरीह तर्दीद करती है।
🔹मन अहदसा (مَن أَحْدَثَ): जो अपनी ख़्वाहिश और मर्ज़ी से कोई काम ईजाद करे।
🔹फ़ी अमरिना हज़ा (في أَمْرِنَا هذا): यहाँ अम्र से मुराद दीन है, यानी दीन में कोई नया काम अपनी तरफ़ से ईजाद करे।
🔹मा लय्सा फ़ीहि (ما ليسَ فِيهِ): जो दीन में से नहीं हो। ब्रेलवी आलिम मुफ़्ती अहमद यारख़ान न'ईमी "ما ليسَ فِيهِ" की शरह में लिखते हैं जो क़ुरआन और हदीस के ख़िलाफ़ हो। (दावत इस्लामी की वेबसाइट: बिदअत की इक़्साम)
🔹फ़हूवा रद्द (فَهو رَدّ): तो वह काम बिदअती के लिए मर्दूद और बातिल है।"
🔈हदीस की शरह के साथ अब इन बिदअतो में से एक नमूना लेकर दीन की कसौटी पर परखते हैं। मिसाल के लिए, जब नबी का नाम आता है तो अंगूठों को आंखों से लगाकर चूमा जाता है और यह एतिबार रखा जाता है कि यह दीन का अमल है, ऐसा करना चाहिए, इससे सवाब मिलता है। जब दीन की किताब क़ुरआन और हदीस में इस अमल को खोजते हैं तो पता चलता है कि यह अमल न क़ुरआन में ज़िक्र है और न ही किसी हदीस में ज़िक्र है। इसका मतलब है कि किसी आदमी ने अपनी तरफ़ से इस अमल को दीन समझकर ईजाद कर लिया है। इसी को बिदअत कहते हैं जो अल्लाह और उसके रसूल की नज़र में मर्दूद है।
📌अब आइए बिदअतीयो के कुछ शक़ों का भी जायज़ा लेते हैं ताकि और बेहतर तरीक़े से बिदअत की हक़ीक़त को समझ सकें। मैं बिदअतीयो के तीन बड़े शुब्हात (शक़ों) और एक अहम मुग़ालते (महत्वपूर्ण भ्रम) का ज़िक्र करूंगा।
1️⃣पहला शुब्हा (शक): जब हम बिदअतीयो को बताते हैं कि अंगूठा चूमना बिदअत है, मीलाद मनाना बिदअत है क्योंकि क़ुरआन और हदीस में इन बातों का कहीं पर हुक्म नहीं दिया गया है, तो आगे से बिदअती जवाब देता है कि रसूल के ज़माने में गाड़ी नहीं थी, बस नहीं थी, ट्रेन नहीं थी, जहाज़ नहीं था, तुम उन पर क्यों सवारी करते हो? क्या यह बिदअत नहीं है? तुम ख़ुद भी रसूल के ज़माने में नहीं थे, इसलिए तुम भी बिदअत हो।
🎙️जवाब: इस शुब्हा को जानने के लिए मुंदरिजा-बाला (उपरोक्त) हदीस-ए-रसूल पर फिर से नज़र डालें। इस हदीस की शरह में मैंने चार बातों का ख़ुलासा किया है। पहली बात तो यह है कि हर वह काम जो अपनी तरफ़ से ईजाद कर लिया जाए जैसा कि लफ़्ज़ "من عمل عملا" से बिलकुल वाज़ेह है। दूसरी बात यह है कि नए काम दीन में ईजाद किए जाएं यानी दुनियावी मामले में नहीं। तीसरी बात यह है कि वह नई ईजाद क़ुरआन या हदीस में से नहीं हो।
तो वह नया अमल (काम) बिदअत है जो कि मर्दूद है और यह चौथी बात है। बिदअती जब यह कहे कि रसूल के ज़माने में ट्रेन नहीं थी, तुम उस पर सवारी क्यों करते हो, क्या यह बिदअत नहीं है, तो हम उससे कहेंगे कि हमने कब कहा कि जो चीज़ रसूल के ज़माने में नहीं थी, उसका इस्तेमाल बिदअत है, यह तो हमने कभी कहा ही नहीं, यह तो तुम कहते हो। हम तो बिदअत की वही तारीफ़ करते हैं जो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सिखाई है, वह यह है कि जो कोई अपनी तरफ़ से दीन में कोई नया काम ईजाद कर ले जो क़ुरआन और हदीस में से नहीं है, तो वह काम मर्दूद है। अब ज़रा तुम ही बताओ कि क्या ट्रेन कोई काम या अमल है? यह तो एक सामान है। बिदअत का ताल्लुक़ सामान से नहीं है बल्कि अमल से है। दूसरी बात यह है कि क्या ट्रेन की ईजाद दीन के मामले में है या दुनियावी मामला है? ज़ाहिर सी बात है, एक कम अक़्ल भी कहेगा यह दुनियावी मामला है जबकि रसूल ने बिदअत की तारीफ़ में फ़रमाया है जो दीन के मामले में कोई नया काम ईजाद करे, वह अमल बिदअत है।
2️⃣दूसरा शुब्हा: लोगों में एक शुब्हा (शक) यह भी आम है कि आप कहते हैं फुला़ँ काम बिदअत है जबकि फुलाँ मौलवी कहता है यह काम दीन है, इसके करने से सवाब मिलेगा। तो हम किसकी बात सही मानें? आप भी मौलवी, वह भी मौलवी। हम किस मौलवी को दुरूस्त (सही) मानें?
🎙️जवाब: इस शुब्हा (शक) को दीन के अमल की रोशनी में मिसाल देकर समझाता हूँ। आप ज़रा ग़ौर करें, जब आप नमाज़ पढ़ते हैं तो सबसे पहले नमाज़ की नीयत करते हैं, फिर तकबीर कहकर हाथ बांधते हैं, क़ियाम करते हैं, फिर रुकू करते हैं, फिर सजदा करते हैं, इस तरह एक रकात होती है, फिर इसी तरह दूसरी रकात पढ़ते हैं। दो रकात वाली नमाज़ में क़ायदा करके सलाम फैरते हैं, मग़रिब की नमाज़ में दो रकात पर क़ायदा करके फिर तीसरी रकात के लिए उठते हैं, फिर तीसरी रकात पूरी करके दूसरा क़ायदा करके सलाम फैरते हैं। ज़ोहर, अस्र और इशा में चार-चार रकात पढ़ते हैं। नमाज़ को इस शक्ल में क्यों पढ़ते हैं? क्या इस लिए नहीं पढ़ते कि हमें रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसी तरह नमाज़ की तालीम दी है। और बुख़ारी में आपका यह फ़रमान है: तुम लोग इसी तरह नमाज़ पढ़ो जैसे मुझे नमाज़ पढ़ते हुए देखते हो।
इसी तरह जब आप बैतुल्लाह का हज करते हैं तो यौम अल-तर्वियह (आठ ज़िलहिज्जा) से हज का काम शुरू करते हैं, इस दिन मिना जाते हैं, यौम-ए-अरफ़ा को अराफ़ात जाते हैं, इसी दिन सूरज ढलने के बाद मुज़दल्फ़ा आते हैं, यहाँ रात बिताते हैं। यौम अन-नहर को फ़ज़्र के बाद जमरात पर जाते हैं और वहाँ तीन जमरात हैं लेकिन आज के दिन केवल एक जमरा जो मक्का से जुड़ा है, सात कंकड़ मारते हैं। फिर क़ुर्बानी करते हैं, हल्क़ करवाते हैं और हरम शरीफ़ पहुँचकर तवाफ़ इफ़ाज़ा और सई करते हैं। इसके बाद वापस मिना आ जाते हैं, यहाँ अय्याम-ए-तशरीक़ बिताते हैं और तीनों दिन तीनों जमरात को सात-सात कंकड़ मारते हैं। आख़िर में तवाफ़-ए-विदा करके वतन वापस लौट आते हैं। आपसे सवाल है कि आप क्यों ऐसा करते हैं, क्या किसी पीर ने कहा ऐसा करो, किसी वली के कहने से ऐसा करते हैं? या आप ऐसा इस लिए करते हैं कि यह अल्लाह और उसके रसूल का हुक्म है? बेशक यह अल्लाह और उसके रसूल का हुक्म है और हम हज इस तरह इसलिए करते हैं कि रसूल अल्लाह ने इस तरह हज किया है और करने का हुक्म दिया है जैसे कि जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
يا أَيُّها الناسُ خُذُوا عَنِّي مناسكَكم (صحيح الجامع:7882)
तर्जमा: ऐ लोगों! तुम मुझसे हज का तरीक़ा सीख लो।
मैंने सिर्फ़ दो चीज़ें नमाज़ और हज की मिसाल दी है जबकि पूरे दीन का यही हुक्म है जिसका ख़ुलासा यह है कि दीन के सभी मामलों में हम वही करेंगे जो अल्लाह और उसके रसूल ने हमें करने का हुक्म दिया है। अल्लाह तआला का फ़रमान है:
لَقَدْ كَانَ لَكُمْ فِي رَسُولِ اللَّهِ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ (الأحزاب:21)
✨तर्जमा: यक़ीनन तुम्हारे लिए रसूल अल्लाह में उम्दा नमूना (मौजूद) है।
एक दूसरी जगह इर्शाद-ए-रब्बानी है:"
أطيعوا الله وأطيعوا الرسول (النساء:59)
✨तर्जमा: अल्लाह की इताअत करो और रसूल अल्लाह ﷺ की इताअत करो।
इसलिए अगर कोई मौलवी आपको बिदअत की तालीम (शिक्षा) दे या वह बात बताए जिसकी दलील नहीं है, तो उस मौलवी की बात नहीं माननी चाहिए क्योंकि रसूल अल्लाह ने बिदअत से मना किया है और केवल उसी आलिम की बात माननी चाहिए जो क़ुरआन और हदीस के मुताबिक़ (अनुसार) बताए क्योंकि दीन क़ुरआन और हदीस का नाम है।
3️⃣तीसरा शुब्हा (शक): अवाम की ओर (तरफ़) से एक तीसरा शुब्हा पैदा किया जाता है कि अज्र सवाब की नीयत से अगर कोई काम करता है तो इसमें हर्ज क्या है, नीयत तो अच्छी है।
🎙️जवाब: इसके जवाब में हम यह कहेंगे कि सिर्फ़ अच्छी नीयत होना काफ़ी नहीं है, बल्कि अमल भी सुन्नत के मुताबिक़ होना ज़रूरी है, वरना वही अमल बिदअत कहलाएगा जो अल्लाह और उसके रसूल के नज़दीक मर्दूद और बातिल है। इस शुब्हा को एक हदीस की रोशनी में देखते हैं कि बिदअत का इर्तिकाब करने में क्या हर्ज है?"
🏜️सहीह बुख़ारी (5063) मे अनस बिन मालिक से रिवायत है, उन्होंने ब्यान किया कि तीन हज़रात (अली-बिन-अबी-तालिब अब्दुल्लाह-बिन-अम्र -बिन-अल-आस और उस्मान-बिन-मज़ऊन (रज़ि०)) नबी करीम (सल्ल०) की पाक बीवियों के घरों की तरफ़ आपकी इबादत के मुताल्लिक़ पूछने आए जब उन्हें नबी करीम (सल्ल०) का अमल बताया गया तो जैसे उन्होंने उसे कम समझा और कहा कि हमारा नबी करीम (सल्ल०) से क्या मुक़ाबला! आपकी तो तमाम अगली पिछली ख़ताएँ माफ़ कर दी गई हैं। उन में से एक ने कहा कि आज से मैं हमेशा रात भर नमाज़ पढ़ा करूँगा। दूसरे ने कहा कि मैं हमेशा रोज़े से रहूँगा और कभी नाग़ा नहीं होने दूँगा। तीसरे ने कहा कि मैं औरतों से जुदाई इख़्तियार कर लूँ गा और कभी निकाह नहीं करूँगा। फिर नबी करीम (सल्ल०) तशरीफ़ लाए और उन से पूछा : क्या तुमने ही ये बातें कही हैं? सुन लो! अल्लाह तआला की क़सम! अल्लाह से मैं तुम सबसे ज़्यादा डरने वाला हूँ। मैं तुममें सबसे ज़्यादा परहेज़गार हूँ लेकिन मैं अगर रोज़े रखता हूँ तो इफ़्तार भी करता हूँ। नमाज़ पढ़ता हूँ (रात में) और सोता भी हूँ और मैं औरतों से निकाह करता हूँ। فمن رغب عن سنتي فليس مني मेरे तरीक़े से जिसने बे तवज्जोही की वो मुझ में से नहीं है।
🏜️इस हदीस पर अच्छी तरह ग़ौर करें। एक तरफ़ तीन जलीलुल क़द्र सहाबी, दूसरी तरफ़ उनकी नीयत भी अच्छी है, फिर क्यों रसूल अल्लाह ने उन्हें अच्छी नीयत से मना किया? इन सब के अमल में हर्ज क्या है? हर्ज यही है कि इन सब का अमल सुन्नत के ख़िलाफ़ था, इसलिए आपने उनसे कहा कि जो सुन्नत के ख़िलाफ़ अमल करे वह हम में से नहीं है। आपने देख लिया कि अच्छी नीयत के बावजूद सुन्नत की ख़िलाफ़-वर्ज़ी की वजह से अमल मर्दूद (अस्वीकृत) हो रहा है, यही हाल हर क़िस्म (प्रकार) की बिदअत का है, यानी हर बिदअत मर्दूद (अस्वीकृत) है।
🔴बिदअत-ए-हसना और बिदअत-ए-सय्यिआ की तक़सीम का मुग़ालता:
बिदअती लोग अवाम में एक मुग़ालता (भ्रांति) फैलाते हैं। वह भ्रांति यह है कि हर क़िस्म (प्रकार) की बिदअत से इस्लाम ने मना नहीं किया, बल्कि कुछ बिदअतें अच्छी होती हैं जिन पर अमल किया जा सकता है, और कुछ बिदअतें बुरी होती हैं जिनसे बचना चाहिए। यानी इन बिदअतीयो ने अपनी बिदअतो की समर्थन में बिदअत की दो क़िस्में की हैं: एक बिदअत-ए-हसना (अच्छी) और दूसरी बिदअत-ए-सय्यिआ (बुरी)। इस तक़सीम (विभाजन) का उद्देश्य यह है कि उन्होंने दीन में जो भी बिदअतें और बेतुके बातें ईजाद की हैं, उन्हें जायज ठहराना ताकि आम लोगों को यह बताया जा सके कि हम जो बिदअत करते हैं वह बिदअत-ए-हसना है, इससे कोई गुनाह नहीं होता, बल्कि इसके करने से अज्र मिलता है और जिस बदअत पर गुनाह मिलता है, वह दूसरी बिदअत है, बिदअत-ए-सय्यिआ।
🔥हक़ीक़त में बिदअत की यह तक़सीम उसी तरह से फ़र्ज़ी (काल्पनिक) और बनावटी है जैसे उनकी सारी बिदअतें फ़र्ज़ी (काल्पनिक) और बनावटी हैं। अगर कहीं बिदअत-ए-हसना का ज़िक्र मिलता है, तो वहां लुग़वी माना का एतिबार रखा गया है, जबकि शरई तौर पर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हर क़िस्म की बिदअत को गुमराही और ज़लालत क़रार दिया है। चूंकि जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अनहु कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने ख़ुत्बे में अल्लाह की हम्द और सना बयान करने के बाद फ़रमाते:"
إن اصدق الحديث كتاب الله , واحسن الهدي هدي محمد , وشر الامور محدثاتها , وكل محدثة بدعة وكل بدعة ضلالة وكل ضلالة في النار(صحيح سنن النسائي:1579)
✨तर्जमा: सबसे सच्ची बात अल्लाह की किताब है, और सबसे बेहतर तरीक़ा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का तरीक़ा है, और सबसे बुरा काम नए काम हैं, और हर नया काम बिदअत है और हर बिदअत गुमराही है, और हर गुमराही जहन्नम में ले जाने वाली है।
📌इस हदीस से साफ़ तौर पर मालूम होता है कि दीन में कोई भी नया काम बिदअत में गिना जाएगा, इसलिए यह कहना कि बिदअत अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी, ग़लत है और हदीस-ए-रसूल के ख़िलाफ़ है।
🔥आख़िर में बिदअतीयो का हुक्म भी जान लें।
ये लोग दावा करते हैं कि हम ही सबसे ज़्यादा रसूल से मोहब्बत करते हैं, हम ही ज़्यादा आप पर दरूद पढ़ते हैं, इसलिए हम लोग ही आख़िरत में रसूल के साथ होंगे, हम लोगों को आपकी शफ़ाअत मिलेगी और जन्नत में दाख़िल होंगे। इसी प्रकार की बातों की तर्जुमानी करते हुए एक बरेलवी शायर जमीलुर्रहमान रिज़वी क़ादरी अपने नातिया कलाम के मुक़त्ता' में कहता है:
✒️मैं वह सुन्नी हूँ जमील क़ादरी मरने के बाद - मेरा लाशा भी कहेगा अस्सलातु वस्सलाम।
🏜️इन बिदअतीयो के दावे की हक़ीक़त मज़कूरा बाला हदीस से देखिए कि एक तरफ़ रसूल अल्लाह की तालीम यह है कि सबसे सच्ची किताब क़ुरआन है और सबसे बेहतर तरीक़ा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का है, लेकिन ये लोग नाम तो नबी का लेते हैं, मगर काम सब बिदअत वाला करते हैं। जो लोग क़ुरआन और तरीक़े मुहम्मद से हटकर दीन में बिदअते ईजाद करते हैं और उन पर अमल करते हैं, क्या वे लोग मुहिब्ब-ए-रसूल हो सकते हैं? हरगिज़ हरगिज़ बिदअती मुहिब्ब-ए-रसूल नहीं हो सकता, बल्कि बिदअती जो ख़ुद को सच्चा मुहिब्ब-ए-रसूल कहता है, उसका दावा खोखला और झूठा है। यही वजह है कि रसूल अल्लाह ने इन बिदअतीयो के बारे में आगाह कर दिया कि हर बिदअत गुमराही है और हर गुमराही जहन्नम में ले जाने वाली है। भला जो काम जहन्नम में ले जाने वाला हो, उस काम की बुनियाद पर रसूल अल्लाह की शफ़ात कैसे मिलेगी? इतना ही नहीं, अल्लाह तआला आख़िरत में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इन बिदअतीयो की बिदअतों के बारे में भी आगाह करेगा, और जब बिदअती लोग हौज़-ए-कौसर के पास आएंगे तो भगा दिए जाएंगे। सही बुख़ारी में अनस रज़ियल्लाहु अनहु से मरवी है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:
لَيَرِدَنَّ عَلَيَّ ناسٌ مِن أصْحابِي الحَوْضَ، حتَّى عَرَفْتُهُمُ، اخْتُلِجُوا دُونِي، فأقُولُ: أصْحابِي! فيَقولُ: لا تَدْرِي ما أحْدَثُوا بَعْدَكَ(صحيح البخاري:6582)
✨तर्जमा: मेरे कुछ साथी हौज़ पर मेरे सामने लाए जाएंगे और मैं उन्हें पहचान लूंगा, लेकिन फिर वे मेरे सामने से हटा दिए जाएंगे। मैं कहूंगा कि ये तो मेरे साथी हैं, लेकिन मुझसे कहा जाएगा कि आप नहीं जानते कि उन्होंने आपके बाद क्या नई चीज़ें ईजाद कर ली थीं।
📌बिदअतीयो का हाल कितना अजीब है?
जिंदगी भर या रसूल अल्लाह का नारा लगाते रहे, मीलाद मनाते रहे, जुलूस निकालते रहे, झंडे लगाते रहे, रसूल की इज़्ज़त में खड़े रहते रहे, खड़े होकर सामूहिक दरूद पढ़ते रहे और अंगूठा चूमते रहे, परिणाम यह हुआ कि आख़िरत में रसूल और हौज़-ए-कौसर से दूर कर दिए गए।
✒️न तो ख़ुदा मिला, न विसाल-ए-सनम, न इधर के हुए, न उधर के हुए।
🔥जो लोग जाने-अनजाने किसी तरह से भटक गए हैं, उन सभी से दरख़्वास्त (अनुरोध) है कि अभी भी वक्त है, साबिक़ा गुनाहों से तौबा कर लें और सच्चे मुहिब्ब-ए-रसूल बनने और आख़िरत में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हाथों से हौज़-ए-कौसर पीने के लिए अल्लाह की किताब क़ुरआन करीम और रसूल अल्लाह की प्यारी सुन्नत अहादीस तैबा के मुताबिक़ अमल करें। अल्लाह से दुआ है कि इस मज़मून को भटके हुए लोगों के लिए राह-ए-रास्त पर आने का ज़रिया बनाए।"
✍️नोट-जो लोग इस मज़मून का वीडियो ब्यान सुनना चाहते हैं वह मुहर्रिर (तहरीर लिखने वाले) के यूट्यूब चैनल पर पांच फ़रवरी 2022 को अपलोड किया गया ब्यान ब-'उन्वान "बिदअत को पहचानिए" सुन सकते हैं।
https://www.youtube.com/watch?v=g3MYh6a6iJg&t=1676s
~ Maqubool Ahmad Salafi