بدھ، 7 اگست، 2024

मेले ठैले मे जाना कैसा है?

 मेले ठैले मे जाना कैसा है? 

सवाल: क्या ख़रीद और बिक्री की ग़रज़ (मक़सद) से या ऐसे ही घूमने की ग़र्ज़ से हिंदुओं के मेले-ठेले, जैसे दशहरा, पूर्णिमा, छठ वग़ैरह में जा सकते हैं? और दीगर मेलों का क्या हुक्म है?
जवाब: अगर कोई तिजारती मेला हो, जैसे किताबों का मेला, तिजारती सामान की नुमाइश, तो उनमें जाने में कोई हरज नहीं है, लेकिन जो हिंदुओं का धार्मिक मेला हो, उसमें किसी ग़रज़ से जाना जाइज़ नहीं, चाहे तिजारत की ग़रज़ से ही क्यों न हो, क्योंकि उस जगह ग़ैरुल्लाह की इबादत की जाती है, सैंकड़ों क़िस्म के शिर्की काम अंजाम दिए जाते हैं। किसी मुसलमान के लिए जाइज़ नहीं कि वह शिर्क वाली जगह पर जाए। अल्लाह का फ़रमान है:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّمَا الْخَمْرُ‌ وَالْمَيْسِرُ‌ وَالْأَنصَابُ وَالْأَزْلَامُ رِ‌جْسٌ مِّنْ عَمَلِ الشَّيْطَانِ فَاجْتَنِبُوهُ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ ﴿المائدۃ:٩٠﴾
तर्जुमा: "ऐ ईमान वालो, बेशक शराब, जुआ, मूर्तियां और पासे शैतान के गंदे कामों में से हैं। इससे बचो ताकि तुम कामयाब हो जाओ।" 
यह ज़ालिम क़ौम है, ऐसी क़िस्म के साथ ऐसी जगह में जमा होना मना है। अल्लाह फ़रमाता है:
وَاِمَّا يُنْسِيَنَّكَ الشَّيْطَانُ فَلَا تَقْعُدْ بَعْدَ الذِّكْرٰى مَعَ الْقَوْمِ الظَّالِمِيْنَ ﴿الانعام :٦٨﴾
तर्जुमा: "और अगर तुम्हें शैतान भुला दे, तो याद आ जाने के बाद ज़ालिमों के पास न बैठो।"
हिंदू के मेले में शिर्कत, शिर्किया अमल और काम मे मदद शुमार होगी। अल्लाह का फ़रमान है:
وَتَعَاوَنُوْا عَلَى الْبِرِّ وَالتَّقْوٰى ۖ وَلَا تَعَاوَنُوْا عَلَى الْاِثْمِ وَالْعُدْوَانِ ۚ وَاتَّقُوا اللّٰهَ ۖ اِنَّ اللّٰهَ شَدِيْدُ الْعِقَابِ(المائدۃ : 2)
तर्जुमा: "और आपस में नेक काम और परहेज़गारी पर मदद करो, और गुनाह और ज़ुल्म पर मदद न करो, और अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह सख़्त अज़ाब देने वाला है।" 
कोई भी ऐसी जगह जहाँ मुंकिर हो, वहाँ नहीं जाना चाहिए। सही हदीस में है कि एक बार अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दावत दी, आप आए और घर में तस्वीरें देखीं तो लौट गए। हदीस देखें:
صنعتُ طعامًا فدعوتُ رسولَ اللَّهِ صلَّى اللَّهُ عليْهِ وسلَّمَ فجاءَ فرأى في البيتِ تصاويرَ فرجَع( صحيح ابن ماجه:2724)
तर्जुमा: "मैंने खाना बनाया और रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दावत दी, वह आए और घर में तस्वीरें देखीं तो लौट गए।" 
यह तस्वीरों का मामला था, तो फिर जहाँ सैंकड़ों शिर्किया काम होते हों, वहाँ जाना कैसे जाइज़ हो सकता है?
इसी तरह बरेलवियों के उर्स वाले मेलों में भी जाना जाइज़ नहीं, क्योंकि उन्होंने क़ब्रों को सजदा गाह बना लिया है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इससे मना फ़रमाया है:
لا تجعلوا بيوتَكُم قبورًا، ولا تجعلوا قَبري عيدًا، وصلُّوا عليَّ فإنَّ صلاتَكُم تبلغُني حَيثُ كنتُمْ( صحيح أبي داود:2042)
तर्जुमा: "अपने घरों को क़ब्रिस्तान न बनाओ, और न ही मेरी क़ब्र को ईद (मेले की जगह) बनाओ, और मुझ पर दरूद भेजो, तुम्हारा दरूद मुझ तक पहुँच जाता है जहाँ से भी भेजो।" 
हमें अगर कहीं मुंकिर का काम मिले, तो उसमें शिर्कत करने और उसका त'आवुन करने से परहेज़ करना चाहिए, बल्कि हमें उसे मिटाने की कोशिश करनी चाहिए। यही हमारा दावती फ़र्ज़ और ईमान का हिस्सा है।
~ शैख़ मक़बूल अहमद सलफ़ी हाफ़िज़ाहुल्लाह

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