بدھ، 7 اگست، 2024

सवाल: अल्लाह के अलावा दिल में किसी और का डर पैदा होने से क्या शिर्क हो जाता है?

 सवाल: अल्लाह के अलावा दिल में किसी और का डर पैदा होने से क्या शिर्क हो जाता है?

जवाब: अल्लाह का डर और उसका ख़ौफ़ इबादत है। बंदा जितना अल्लाह से डरने वाला होगा, अल्लाह का उतना ही क़रीबी और महबूब होगा। अल्लाह ने इंसान को सिर्फ़ उससे डरने का हुक्म दिया है। फ़रमाने इलाही है:
واياي فارهبون
तर्जुमा: और मुझ ही से डरो। (अल बक़रा: 40)
अल्लाह का फ़रमान है:
يا أيها الذين آمنوا اتقوا الله وقولوا قولا سديدا. (الاحزاب: 70)
तर्जुमा: ऐ ईमान वालों! अल्लाह से डरते रहो और बात साफ़-सुथरी किया करो।
एक दूसरी जगह इरशाद रब्बानी है:
فلا تخشوا الناس واخشون ولا تشتروا بآياتي ثمنا قليلا.
तर्जुमा: अब तुम्हें चाहिए कि लोगों से न डरो और सिर्फ़ मेरा डर रखो। मेरी आयतों को थोड़े से मोल न बेचो। (अल माइदा: 44)
यह डर और ख़ौफ़ अल्लाह से अपनी बिसात-भर होना चाहिए, जैसा कि अल्लाह का फ़रमान है:
يا أيها الذين آمنوا اتقوا الله حق تقاته ولا تموتن إلا وأنتم مسلمون. (آل عمران: 102)
तर्जुमा: ऐ ईमान वालों! अल्लाह से इतना डरो जितना उससे डरना चाहिए। देखो, मरते दम तक मुसलमान ही रहना।
गोया डरने का मुस्तहिक़ सिर्फ़ अल्लाह है। उसके मुक़ाबले में किसी से डरना इबादत में शिर्क कहलाएगा। उसकी दो सूरतें बन सकती हैं:
(1) बंदों से डर कर दीन पर अमल करना छोड़ दे।
(2) ग़ैरुल्लाह से इस तरह डरना या डरने का अक़ीदा रखना कि वह अल्लाह के बग़ैर ख़ुद से नुक़सान पहुंचा सकता है। मिसाल के तौर पर बुत, वली, जिन्न, मय्यत और ख़्याली भटकती रूहे वग़ैरह।
इस बात का ज़िक्र अल्लाह ने क़ुरआन में इस अंदाज में किया है:
انما ذلكم الشيطان يخوف أولياءه فلا تخافوهم وخافون إن كنتم مؤمنين. (آل عمران: 175)
तर्जुमा: यह ख़बर देने वाला शैतान ही है जो अपने दोस्तों से डराता है। तुम उन काफ़िरों से न डरो और मेरा ख़ौफ़ रखो अगर तुम मोमिन हो।
इसलिए किसी सूरत में अल्लाह के अलावा दिल में दूसरों का डर नहीं पैदा किया जाएगा। फ़ायदा और नुक़सान का मालिक सिर्फ़ अल्लाह है। अल्लाह के हुक्म के बग़ैर कोई हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।
फ़रमान-ए-इलाही है:
وإن يمسسك الله بضر فلا كاشف إلا هو وإن يمسسك بخير فهو على كل شيء قدير. (الأنعام: 17)
तर्जुमा: अगर अल्लाह तुम्हें किसी क़िस्म का नुक़सान पहुंचाए तो उसके सिवा कोई नहीं जो तुम्हें इस नुक़सान से बचा सके और अगर वह तुम्हें किसी भलाई से बहरा-मंद करे तो वह हर चीज़ पर क़ादिर है।
ख़ौफ़ बेचैनी का नाम है जो बंदा के दिल में फ़राइज़ और वाजिबात में कोताही और गुनाह के इर्तिकाब पर पैदा होती है। इसी तरह बंदा ताअत करके अदम-ए-क़बूलियत के ख़दशे से भी डरता रहता है।
हां, तब्बा'ई ख़ौफ़ उस ख़ौफ़ से अलग है। वह फ़ितरी चीज़ है, जैसे सांप को देखकर, दरिंदों को देखकर इंसान डर जाता है। यह डर अल्लाह के मुक़ाबले में नहीं होता है। यह सिर्फ़ फ़ितरी एहसास होता है, जैसा कि मूसा अलैहिस्सलाम सांप से डर गए। अल्लाह का फ़रमान है:
وألق عصاك فلما رآها تهتز كأنها جان ولى مدبرا ولم يعقب يا موسى لا تخف إني لا يخاف لدي المرسلون. (النمل: 10)
तर्जुमा: तू अपनी लाठी डाल दे। मूसा ने जब उसे हिलता देखा, इस तरह कि गोया वह एक सांप है, तो मुंह मोड़े हुए पीठ फेरकर भागे और पलटकर भी न देखा। ऐ मूसा! ख़ौफ़ न खा, मेरे हुज़ूर में पैगंबर डरा नहीं करते।
अल्लाह से डरने का बदला जन्नत है। अल्लाह का फ़रमान है:
وأما من خاف مقام ربه ونهى النفس عن الهوى فإن الجنة هي المأوى. (النازعات: 40-41)
तर्जुमा: हां, जो शख़्स अपने रब के सामने खड़े होने से डरता रहा होगा और अपने नफ़्स को ख़्वाहिश से रोका होगा, तो उसका ठिकाना जन्नत ही है।
अल्लाह हमें ख़ौफ़ और ख़शियत की सिफ़त से मुत्तसिफ़ कर दे। आमीन।
~ शैख़ मक़बूल अहमद सलफ़ी हाफ़िज़ाहुल्लाह

کوئی تبصرے نہیں:

ایک تبصرہ شائع کریں