बाज़ (कुछ) बे-दीनी या मग़रिबी तहज़ीब (पश्चिमी सभ्यता) से मुतासिर (प्रभावित) औरतें तलाक की इद्दत पूरी नही करतीं। इस्लाम में ऐसी औरत की क्या सज़ा है?
जवाब: अगर किसी मुस्लिम औरत ने शौहर के तलाक़ देने के बाद इद्दत नहीं पूरी की, तो वह इस्लाम की अहम तालीम (शिक्षा) के ख़िलाफ़-वर्ज़ी करती है। ऐसी स्थिति में, उसे सच्चे दिल से अल्लाह तआला से तौबा करनी चाहिए, वरना आख़िरत में उसकी पूछ होगी। हाँ, अगर भूल से या जानबूझकर कुछ दिनों की इद्दत नहीं पूरी की तो अल्लाह अपनी रहमत से माफ़ कर देगा और उसकी कोई क़ज़ा भी नहीं है। इद्दत के दिनों के बीत जाने के बाद उसकी कोई क़ज़ा नहीं है।
यहां एक अहम मामला है कि अगर किसी औरत को तलाक़ की इद्दत (तीन हाइज़) पूरी करनी थी, और उसने इद्दत न पूरी करके उसी दौरान किसी दूसरे मर्द से शादी कर ली, तो यह शादी हराम और बातिल है। अल्लाह का फ़रमान है:
وَلا تَعْزِمُوا عُقْدَةَ النِّكَاحِ حَتَّى يَبْلُغَ الْكِتَابُ أَجَلَهُ (البقرة: 235)
तर्जुमा: और शादी का इक़रार तब तक पक्का न करो जब तक इद्दत पूरी न हो जाए।
ऐसे जोड़े का एक साथ रहना हराम और ज़िना शुमार होगा। मुसलमान काज़ी/ज़िम्मेदार को चाहिए कि इन दोनों के बीच तफ़रीक़ (अलेहदगी) कर दे। फिर औरत पहले शौहर की बाक़ी इद्दत पूरी करे और फिर दूसरे बातिल शादी की भी इद्दत पूरी करे। हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ऐसे लोगों को कोड़े लगाते थे।
~शैख़ मक़बूल अहमद सलफ़ी हाफ़िज़ाहुल्लाह
यहां एक अहम मामला है कि अगर किसी औरत को तलाक़ की इद्दत (तीन हाइज़) पूरी करनी थी, और उसने इद्दत न पूरी करके उसी दौरान किसी दूसरे मर्द से शादी कर ली, तो यह शादी हराम और बातिल है। अल्लाह का फ़रमान है:
وَلا تَعْزِمُوا عُقْدَةَ النِّكَاحِ حَتَّى يَبْلُغَ الْكِتَابُ أَجَلَهُ (البقرة: 235)
तर्जुमा: और शादी का इक़रार तब तक पक्का न करो जब तक इद्दत पूरी न हो जाए।
ऐसे जोड़े का एक साथ रहना हराम और ज़िना शुमार होगा। मुसलमान काज़ी/ज़िम्मेदार को चाहिए कि इन दोनों के बीच तफ़रीक़ (अलेहदगी) कर दे। फिर औरत पहले शौहर की बाक़ी इद्दत पूरी करे और फिर दूसरे बातिल शादी की भी इद्दत पूरी करे। हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ऐसे लोगों को कोड़े लगाते थे।
~शैख़ मक़बूल अहमद सलफ़ी हाफ़िज़ाहुल्लाह
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