तौबा की नमाज़
तहरीर: शैख़ मक़बूल अहमद सलफ़ी हाफ़िज़ाहुल्लाह
हिंदी मुतर्जिम: हसन फ़ुज़ैल आदमी गुनाहों का पुतला है, ख़ताएँ होती रहती हैं। बनी आदम को हमेशा अल्लाह की तरफ़ रुजू करते रहना चाहिए। जब बनी आदम से ग़लती होती है और वह शर्मिंदा होकर अल्लाह से माफ़ी मांगता है तो वह अल्लाह को बहुत ज़्यादा माफ़ करने वाला पाता है।
अल्लाह ने अपने बंदों को माफ़ी पर उभारा है, फ़रमान-ए-इलाही है:
وتوبوا إلى الله جميعا أيها المؤمنون لعلكم تفلحون
तर्जुमा: और ईमान लाने वालो, तुम सब अल्लाह की तरफ़ तौबा (रुजू) करो ताकि तुम कामयाब हो।
(सूरह नूर: 31)
और नबी ﷺ ने जहाँ तौबा पर उभारा वहीं आपका इस पर कसरत से अमल भी रहा है। आप दिन में 100-100 बार इस्तिग़फार किया करते थे।
तौबा के लिए नमाज़-ए-तौबा शर्त नहीं, मुस्तहब है।
तौबा के लिए नदामत/शर्मिंदगी ही काफ़ी है, ताहम इस्तिग़फ़ार का मुस्तहसन (अच्छा) तरीक़ा यह है कि बंदा किसी ख़ास या आम गुनाह सरज़द हो जाने पर तौबा करने की नियत से वुज़ू कर के 2 रकात नमाज़ अदा करने के बाद निहायत ख़ुलूस-ए-दिल से अपने गुनाहों पर शर्मिंदा हो और अल्लाह से माफ़ी मांगे और आइंदा उन गुनाहों को छोड़ दे और ना करने का अज़्म कर ले तो अल्लाह रब्बुल आलमीन अपने बंदे को माफ़ फ़रमा देते हैं।
तौबा की नमाज़ की दलील:
नबी ﷺ ने फ़रमाया:
ما من عبد يذنب فيحسن الطهور ثم يقوم فيصلي ركعتين ثم يستغفر الله إلا غفر الله له
तर्जुमा: कोई आदमी जब गुनाह करता है फिर वुज़ू कर के 2 रकात नमाज़ पढ़ता है और अल्लाह से इस्तिग़फार करता है तो अल्लाह उसे माफ़ फ़रमा देता है।
(अबू दाऊद: 1521)
इस हदीस को अल्बानी रहिमहुल्लाह ने सहीह क़रार दिया है।
अल्लाह ने अपने बंदों को माफ़ी पर उभारा है, फ़रमान-ए-इलाही है:
وتوبوا إلى الله جميعا أيها المؤمنون لعلكم تفلحون
तर्जुमा: और ईमान लाने वालो, तुम सब अल्लाह की तरफ़ तौबा (रुजू) करो ताकि तुम कामयाब हो।
(सूरह नूर: 31)
और नबी ﷺ ने जहाँ तौबा पर उभारा वहीं आपका इस पर कसरत से अमल भी रहा है। आप दिन में 100-100 बार इस्तिग़फार किया करते थे।
तौबा के लिए नमाज़-ए-तौबा शर्त नहीं, मुस्तहब है।
तौबा के लिए नदामत/शर्मिंदगी ही काफ़ी है, ताहम इस्तिग़फ़ार का मुस्तहसन (अच्छा) तरीक़ा यह है कि बंदा किसी ख़ास या आम गुनाह सरज़द हो जाने पर तौबा करने की नियत से वुज़ू कर के 2 रकात नमाज़ अदा करने के बाद निहायत ख़ुलूस-ए-दिल से अपने गुनाहों पर शर्मिंदा हो और अल्लाह से माफ़ी मांगे और आइंदा उन गुनाहों को छोड़ दे और ना करने का अज़्म कर ले तो अल्लाह रब्बुल आलमीन अपने बंदे को माफ़ फ़रमा देते हैं।
तौबा की नमाज़ की दलील:
नबी ﷺ ने फ़रमाया:
ما من عبد يذنب فيحسن الطهور ثم يقوم فيصلي ركعتين ثم يستغفر الله إلا غفر الله له
तर्जुमा: कोई आदमी जब गुनाह करता है फिर वुज़ू कर के 2 रकात नमाज़ पढ़ता है और अल्लाह से इस्तिग़फार करता है तो अल्लाह उसे माफ़ फ़रमा देता है।
(अबू दाऊद: 1521)
इस हदीस को अल्बानी रहिमहुल्लाह ने सहीह क़रार दिया है।
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