अहल-ए-बैत और उनका मक़ाम-ओ-मर्तबा
तहरीर: शैख़ मक़बूल अहमद सलफ़ी हाफ़िज़ाहुल्लाह
हिंदी मुतर्जिम: हसन फ़ुज़ैल काइनात (दुनिया-जहाँ) की सबसे अफ़ज़ल हस्ती, सय्यदुल बशर और इमामुल अंबिया के घराने वालों को अहले बैत कहा जाता है। इस नसब और ख़ानदान से होना दुनिया का सबसे बड़ा एज़ाज़ (सम्मान) और इकराम है, यही वजह है कि बहुत से अरबी और अजमी मुसलमान इस ए'ज़ाज़ और इकराम को पाने के लिए बिना सबूत के ख़ुद को सय्यदी, हाशमी और सादाती लिखते और बतलाते हैं। अहले बैत के नाम पर सिर्फ़ ए'ज़ाज़ और इकराम पाने की बात नहीं है बल्कि मुस्लिम समाज को बड़े अफ़सोसनाक मसाइल भी दरपेश हैं, आपस में ख़लफ़शार, तनाज़ो, सब-ओ-शत्म और तकफ़ीर-ओ-तज़लील के भयानक असरात पाए जाते हैं। मैंने इस मज़मून में इख़्तिसार के साथ अहले बैत के मक़ाम और मर्तबा को उजागर करने की कोशिश की है, दिल में एक छोटी सी निय्यत ये रखी है कि लोग अहले बैत को जानें और उनको सही मक़ाम दें और इस बाबत नासबिय्यत और राफज़िय्यत से परहेज़ करें। नासबिय्यत क्या है, अहले बैत को तकलीफ़ पहुंचाना, उनको सब-ओ-शत्म करना और उनके शान में गुस्ताख़ी करना और राफज़िय्यत नाम है अहले बैत के नाम पर चंद अफ़राद की मोहब्बत में हद से ज़्यादा ग़ुलू करना और दीगर अहले बैत और बहुत सारे सहाबा को लान-ओ-त'अन करना।
अहले बैत कौन हैं, पहले ये बात जान लेते हैं क्योंकि आम अवाम की अक्सरियत को अहले बैत का भी सही इल्म नहीं है। अहले बैत का मतलब घराने वाले, इससे मुराद नबी ﷺ के वो तमाम घर वाले जिन पर सदक़ा हराम है। इनमें आपकी औलाद (ज़ैनब, रुक़ैया, उम्मे कुलसूम और फ़ातिमा), नाती-नातिन, आपके चाचा (हमज़ा और अब्बास), आपकी फूफी (सफ़िया), आपकी तमाम बीवियाँ (ख़दीजा, आयशा, सऊदा, हफ़्सा, उम्मे सलमा, ज़ैनब बिन्त ख़ुज़ैमा, जुवैरिया, सफ़िया, उम्मे हबीबा, मैमूना और ज़ैनब बिन्त जहश) और बनू हाशिम के सारे मुसलमान मर्द और औरत शामिल हैं।
नबी ﷺ की बेटियाँ अहले बैत में हैं, इसकी दलील की ज़रूरत नहीं है। हालांकि चाचा भी अहले बैत में से हैं, इसकी ख़ास दलील ज़िक्र करता हूँ। नबी ﷺ के चाचा हारिस के बेटे रबीआ और रबीआ के बेटे अब्दुल मुत्तलिब जो कि सहाबी हैं और उनसे हदीस भी मरवी है। ये (अब्दुल मुत्तलिब बिन रबीआ) और नबी ﷺ के चाचा अब्बास रज़ी अल्लाहु अन्हु के बेटे फ़ज़्ल, दोनों आपकी ख़िदमत में हाज़िर हुए और कहा कि हमें माल सदक़ा पर आमिल/मज़दूर मुक़र्रर करलें ताकि इस कमाई से शादी की तैयारी कर सकें तो आप ﷺ ने फ़रमाया:
إنَّ الصَّدَقَةَ لا تَنْبَغِي لِآلِ مُحَمَّدٍ إنَّما هي أَوْسَاخُ النَّاسِ(صحيح مسلم:1072)
तर्जमा: आल-ए-मुहम्मद के लिए सदक़ा हलाल नही, यह तो लोगों (के माल) का मेल-कुचैल हैं।
सहीह बुख़ारी में है कि ख़ैबर के ख़ुमुस में से नबी ﷺ ने बनू हाशिम और बनू मुत्तलिब को दिया और दूसरे क़ुरैश को न दिया। तो ज़ुबैर बिन मुत्तिम और उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु अन्हुमा नबी ﷺ के पास आए और अर्ज़ की कि आपने बनू मुत्तलिब को तो माल दिया मगर हमें नज़रअंदाज़ कर दिया जबकि हम और वो आपसे एक ही दर्जे की क़राबत रखते हैं। इस पर आप ﷺ ने फ़रमाया:
«إِنَّمَا بَنُو المُطَّلِبِ، وَبَنُو هَاشِمٍ شَيْءٌ وَاحِدٌ»(صحیح البخاری:3140)
तर्जमा: बनू मुत्तलिब और बनू हाशिम तो एक ही चीज़ है।
एक रिवायत में यह इज़ाफ़ा है कि हज़रत ज़ुबैर बिन मुत्तिम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा कि नबी करीम ﷺ ने बनू शम्स और बनू नौफल को नहीं दिया था।
बनू हाशिम, बनू मुत्तलिब, बनू शम्स और बनू नौफल ये आपस में चार भाई थे मगर आपने सिर्फ़ दो को ख़ुमुस दिया और इन दोनों को एक क़रार दिया। इस वजह से कुछ अहले इल्म ने यह इस्तिदलाल किया है कि अहले बैत में जिन पर सदक़ा हराम है, उनमें बनू हाशिम के साथ बनू मुत्तलिब भी हैं, यानी बनू हाशिम की तरह बनू मुत्तलिब भी अहले बैत में शामिल हैं।
मुस्लिम शरीफ़ में एक रिवायत है जिससे शिया, अवाम को यह धोखा देते हैं कि अज़वाज मुतह्हरात आल-ए-बैत में से नहीं हैं। वह रिवायत इस तरह से आई है।
فَقُلْنَا: مَنْ أَهْلُ بَيْتِهِ؟ نِسَاؤُهُ؟ قَالَ: لَا(مسلم:2408)
इस टुकड़े का तर्जमा (अनुवाद) किया जाता है "हमने कहा आल-ए-बैत कौन लोग हैं, नबी ﷺ की बीवियाँ? तो उन्होंने कहा कि नहीं।
इसका असल तर्जमा और मतलब इस तरह है कि हमने उनसे पूछा: आपके अहले बैत कौन हैं? (सिर्फ़) आपकी अज़्वाज? तो उन्होंने कहा कि (सिर्फ़ आपकी अज़्वाज) नहीं। यानी आपकी ﷺ की अज़्वाज के अलावा और दूसरे भी आल-ए-बैत में शामिल हैं। चुनांचे सहीह मुस्लिम में ही इससे पहले वाली हदीस के अल्फ़ाज़ हैं।
"فَقَالَ لَهُ حُصَيْنٌ: وَمَنْ أَهْلُ بَيْتِهِ؟ يَا زَيْدُ أَلَيْسَ نِسَاؤُهُ مِنْ أَهْلِ بَيْتِهِ؟ قَالَ: نِسَاؤُهُ مِنْ أَهْلِ بَيْتِهِ "
यानि और हुसैन ने कहा कि ऐ ज़ैद! आप ﷺ के अहले बैत कौन हैं, क्या आप ﷺ की अज़्वाज-ए-मुतह्हरात अहले बैत नहीं हैं? सय्यदना ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि अज़्वाज-ए-मुतह्हरात भी अहले बैत में दाख़िल हैं।
सहीह मुस्लिम की एक और रिवायत से धोखा दिया जाता है कि क़ुरआन में मज़कूर अहले बैत की तफ़सीर में सिर्फ़ चार लोग ही शामिल हैं, वो अली, फ़ातिमा और हसन-हुसैन हैं। रिवायत इस तरह से है: उम्मुल मोमिनीन आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं:
خَرَجَ النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ غَدَاةً وَعَلَيْهِ مِرْطٌ مُرَحَّلٌ، مِنْ شَعْرٍ أَسْوَدَ، فَجَاءَ الْحَسَنُ بْنُ عَلِيٍّ فَأَدْخَلَهُ، ثُمَّ جَاءَ الْحُسَيْنُ فَدَخَلَ مَعَهُ، ثُمَّ جَاءَتْ فَاطِمَةُ فَأَدْخَلَهَا، ثُمَّ جَاءَ عَلِيٌّ فَأَدْخَلَهُ، ثُمَّ قَالَ: " {إِنَّمَا يُرِيدُ اللهُ لِيُذْهِبَ عَنْكُمُ الرِّجْسَ أَهْلَ الْبَيْتِ وَيُطَهِّرَكُمْ تَطْهِيرًا} [الأحزاب: 33] "(صحیح مسلم:2424)
तर्जमा: रसूलुल्लाह ﷺ सुबह को निकले और आप ﷺ एक चादर ओढ़े हुए थे जिस पर कजावों की सूरतें या हांडियों की सूरतें बनी हुई थीं। इतने में सय्यदना हसन रज़ियल्लाहु अन्हु आए तो आप ﷺ ने उनको इस चादर के अंदर कर लिया। फिर सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु आए तो उनको भी इसमें शामिल कर लिया। फिर सय्यदा फातिमातुज़्ज़हरा रज़ियल्लाहु अन्हा आईं तो उनको भी इन्हीं के साथ शामिल कर लिया। फिर सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु आए तो उनको भी शामिल करके फ़रमाया कि "अल्लाह तआला चाहता है कि तुमसे नापाकी को दूर करे और तुम्हें पाक करे, ऐ घर वालो।"
इस हदीस में चार अफ़राद के ज़िक्र का हरगिज़ मतलब नहीं कि अहले बैत में इन चार के अलावा दूसरे अफ़राद शामिल नहीं हैं। आयत में असल ख़िताब अज़वाज मुतह्हरात को है, इस वजह से वो क़तई तौर पर अहले बैत में शामिल हैं जैसा कि ऊपर सहीह मुस्लिम की सरीह हदीस भी गुज़री है और भी दीगर दलाइल-ओ-शवाहिद हैं कि आप ﷺ की बीवियां और चाचा सब भी अहले बैत में हैं। सय्यदा आयशा के पास ख़ालिद बिन सईद ने सदक़े के तौर पर गाय भेजी तो उन्होंने कहा कि बेशक हम आल-ए-मुहम्मद के लिए सदक़ा हलाल नहीं है। (मुसन्निफ़ इब्न अबी शैबा: 10708) और अब्बास और रबीआ के बेटों को नबी ﷺ ने सदक़ा की कमाई से निकाह न करके माल ख़ुमुस से निकाह कराया था जिसका ज़िक्र भी ऊपर हो चुका है।
अहले बैत के मक़ाम-ओ-मर्तबा को उजागर करते हुए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इर्शाद फ़रमाया:
إِنَّمَا يُرِيدُ اللَّهُ لِيُذْهِبَ عَنكُمُ الرِّجْسَ أَهْلَ الْبَيْتِ وَيُطَهِّرَكُمْ تَطْهِيرًا (الأحزاب:33)
तर्जमा: अल्लाह तआला यही चाहता है कि ऐ नबी के घरवालियो! तुमसे हर क़िस्म की गंदगी को दूर कर दे और तुम्हें ख़ूब पाक कर दे।
इस आयत की रोशनी में अहले बैत, ख़ासकर अज़वाज मुतह्हरात की पाकीज़गी, आला फ़ज़ीलत और बुलंद मक़ाम-ओ-मर्तबा का पता चलता है। हज़रत वासिला बिन अस्क़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बयान करते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को यह फ़रमाते हुए सुना:
إنَّ اللَّهَ اصْطَفَى كِنانَةَ مِن ولَدِ إسْماعِيلَ، واصْطَفَى قُرَيْشًا مِن كِنانَةَ، واصْطَفَى مِن قُرَيْشٍ بَنِي هاشِمٍ، واصْطَفانِي مِن بَنِي هاشِمٍ.(صحيح مسلم:2276)
तर्जमा: अल्लाह तआला ने हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की औलाद में से क़िनानाह को चुन लिया और क़िनानाह में से क़ुरैश को चुना और क़ुरैश में से बनू हाशिम को चुना और बनू हाशिम में से मुझे चुना।
ग़दीर ख़ुम के मक़ाम पर अपने ख़िताब में किताबुल्लाह की तर्ग़ीब और तमस्सुक के बाद आप ﷺ का तीन बार यह कहना बड़ी अहमियत का हामिल है।
أُذَكِّرُكُمُ اللَّهَ في أَهْلِ بَيْتِي، أُذَكِّرُكُمُ اللَّهَ في أَهْلِ بَيْتِي، أُذَكِّرُكُمُ اللَّهَ في أَهْلِ بَيْتي(صحيح مسلم:2408)
तर्जमा: मैं अल्लाह की याद दिलाता हूँ तुमको अपने अहले बैत के बाब में, मैं अल्लाह की याद दिलाता हूँ तुमको अपने अहले बैत के बाब में, मैं अल्लाह की याद दिलाता हूँ तुमको अपने अहले बैत के बाब में।
सहीह मुस्लिम में सआद बिन वक़ास से मरवी है:
وَلَمَّا نَزَلَتْ هذِه الآيَةُ: {فَقُلْ تَعَالَوْا نَدْعُ أَبْنَاءَنَا وَأَبْنَاءَكُمْ} دَعَا رَسولُ اللهِ صَلَّى اللَّهُ عليه وَسَلَّمَ عَلِيًّا وَفَاطِمَةَ وَحَسَنًا وَحُسَيْنًا فَقالَ: اللَّهُمَّ هَؤُلَاءِ أَهْلِي.(صحيح مسلم:2404)
तर्जमा: और जब यह आयत उतरी «نَدْعُ أَبْنَاءَنَا وَأَبْنَاءَكُمْ» "हम अपने बेटों को और तुम अपने बेटों को बुलाओ।" (यानि आयत मुबाहिला) तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु और सय्यदा फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा और हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा को बुलाया, फिर फ़रमाया: या अल्लाह! ये मेरे अहल हैं।
नबी ﷺ का फ़रमान है:
كلُّ سَبَبٍ و نَسَبٍ مُنْقَطِعٌ يومَ القيامةِ ، إلَّا سَبَبي و نَسَبي(السلسلة الصحيحة:2036)
तर्जमा: क़यामत के दिन हर वास्ता और नसबी ताल्लुक़ ख़त्म हो जायेगा अलबत्ता मेरा वास्ता और नसबी ताल्लुक़ क़ाइम रहेगा।
क़ुरआन की आयत से भी यह मफ़हूम वाज़ेह होता है, अल्लाह का फ़रमान है:
فَإِذَا نُفِخَ فِي الصُّورِ فَلَا أَنسَابَ بَيْنَهُمْ يَوْمَئِذٍ وَلَا يَتَسَاءَلُونَ (المومنون:101)
तर्जमा: पस जब सूर फूंक दिया जाएगा उस दिन न तो आपसी रिश्ते ही रहेंगे, न आपसी पूछताछ।
अहले बैत के बड़े फ़ज़ाइल मिलते हैं, ये अहले बैत से मुताल्लिक़ कुछ फ़ज़ाइल थे। अगर फ़र्दा-फ़र्दा रसूल के अहले बैत के फ़ज़ाइल बयान किए जाएं तो कई किताबें तैयार हो जाएंगी। अहले इल्म ने अलग-अलग तरीक़ों से फ़ज़ाइल बयान किए हैं। मुहद्दिसीन ने किताबुल हदीस में नामों से बाब क़ाइम किया है जबकि सीरत निगारों ने अलग-अलग मुस्तक़िल किताबें भी तर्तीब दी हैं।
बहर-कैफ़ (बहरहाल)! अहले बैत ज़मीन पर पाक हस्तियों का नाम है, उनकी इज़्ज़त-ओ-तौक़ीर, उनका इज़्ज़त-ओ-तक़द्दुस और उनसे मोहब्बत-ओ-अक़ीदत मुसलमानों का हिस्सा-ईमान है और जो अहले बैत में से किसी भी फ़र्द से भी अदावत रखता है, वो मुनाफ़िक़ और नासबी है।
قالَ عَلِيٌّ: والذي فَلَقَ الحَبَّةَ، وبَرَأَ النَّسَمَةَ، إنَّه لَعَهْدُ النبيِّ الأُمِّيِّ صَلَّى اللَّهُ عليه وسلَّمَ إلَيَّ: أنْ لا يُحِبَّنِي إلَّا مُؤْمِنٌ، ولا يُبْغِضَنِي إلَّا مُنافِقٌ.(صحيح مسلم:78)
तर्जमा: सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: क़स्म है उस पर जिसने दाना चीर दिया (फिर उसने घास उगाई) और जान बनाई। रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व ने मुझसे अहद किया था कि मुझसे मोहब्बत नहीं रखेगा मगर मोमिन और मुझसे दुश्मनी नहीं रखेगा मगर मुनाफ़िक़
यह मज़मून जिस मक़सद के तहत लिखा हूँ वो यह है कि लोग अहले बैत को जानें कि कौन-कौन लोग इसमें शामिल हैं फिर उन नुफ़ूस क़ुद्सिया की तौक़ीर उसी तरह अदा करें जैसे कि क़ुरआन और हदीस में हमारी रहनुमाई की गई है। न तो उनकी शान में गुस्ताख़ी करें जैसे नवासिब और ख़्वारिज करते हैं और न ही ग़ुलू करें जैसे शिआ और राफ़िज़ करते हैं। उम्मत मोहम्मदीया में रसूलुल्लाह ﷺ के बाद सबसे अफ़ज़ल हस्ती अबू बक्र फिर उमर फिर उस्मान हैं जैसा कि सय्यदना अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है:
كنا نقولُ ورسولُ اللهِ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّم حَيٌّ : أفضلُ أمةِ النبيِّ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّم بعدَه أبو بكرٍ، ثم عمرُ، ثم عثمانُ(صحيح أبي داود:4628)
तर्जमा: हम कहा करते थे जबकि रसूलुल्लाह ﷺ ज़िन्दा थे: नबी करीम ﷺ की उम्मत में आप ﷺ के बाद सबसे अफ़ज़ल अबू बक्र हैं, फिर उमर और फिर उस्मान रज़ी अल्लाहु अन्हु।
यह अक़ीदा न सिर्फ़ आम सहाबा का था बल्कि हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु भी यही मानते और अक़ीदा रखते थे। चुनांचे सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु के बेटे मोहम्मद बिन हनफ़िय्या से मरवी है कि वह कहते हैं कि मैंने अपने वालिद से पूछा:
أَيُّ الناسِ خيرٌ بعد رسولِ اللهِ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّم ؟ قال : أبو بكرٍ، قال : قلتُ : ثُمَّ مَن ؟ قال : ثم عمرُ، قال : ثم خَشِيتُ أن أقولَ : ثُمَّ مَن فيقولُ : عثمانُ . فقلتُ : ثم أَنْتَ يا أَبَةِ ؟ قال : ما أنَا إلا رجلٌ من المسلمينَ(صحيح أبي داود:4629)
तर्जमा: रसूलुल्लाह ﷺ के बाद सबसे अफ़ज़ल कौन है? उन्होंने कहा हज़रत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु। मैंने कहा: फिर कौन? कहा हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु। फिर मुझे डर हुआ कि अगर मैंने पूछा कि उनके बाद कौन है तो वे कहेंगे हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु। तो मैंने ख़ुद ही कह दिया: फिर तो आप ही हो अब्बा जान! वे कहने लगे कि मैं तो मुसलमानों में से एक आम आदमी हूँ।
शिआ के यहाँ यह तर्तीब नहीं है। वे अली रज़ियल्लाहु अन्हु को ही पहला नंबर देते हैं और ख़ुलफ़ा-ए-सोलासा अबू बक्र, उमर, और उस्मान के ख़िलाफ़ बदज़बानी करते हैं, गालियाँ देते हैं, इस क़दर अदावत है कि इन नामों पर अपने बच्चों का नाम भी नहीं रखते, और चार लोग (अली, फ़ातिमा, हसन, हुसैन) के अलावा अहले बैत में किसी को तस्लीम नहीं करते।
अमीरुल मोमिनीन सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक़ की अहले बैत से मोहब्बत देखें:
والذي نَفْسِي بيَدِهِ لَقَرابَةُ رَسولِ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عليه وسلَّمَ أحَبُّ إلَيَّ أنْ أصِلَ مِن قَرابَتِي(صحيح البخاري:4240)
तर्जमा: उस ज़ात की क़स्म! जिसकी हाथ में मेरी जान है, रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की क़राबत के साथ सिला-ए-रहिमी मुझे अपनी क़राबत से सिला-ए-रहिमी से ज़्यादा अज़ीज़ है।
उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु, अल्लाह से दुआ करते हुए कहते हैं:
اللَّهُمَّ إنَّا كُنَّا نَتَوَسَّلُ إلَيْكَ بنَبِيِّنَا صَلَّى اللهُ عليه وسلَّمَ فَتَسْقِينَا، وإنَّا نَتَوَسَّلُ إلَيْكَ بعَمِّ نَبِيِّنَا فَاسْقِنَا۔(صحيح البخاري:3710)
तर्जमा: ऐ अल्लाह, पहले हम अपने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से बारिश की दुआ कराते थे तू हमें सैराबी अता करता था और अब हम अपने नबी के चाचा (अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब) के ज़रिए बारिश की दुआ करते हैं।
और सय्यदना उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु का हाल देखें, जब वे अपने घर में घेर लिए गए थे तो उस वक्त वहां हसन आपकी हिफ़ाज़त (रक्षा) के लिए तलवार के साथ मौजूद थे और लड़ना चाहते थे, मगर हज़रत उस्मान ने अल्लाह का वास्ता देकर उन्हें अपने घर भेज दिया ताकि उन्हें कोई तकलीफ़ न पहुंचे और हज़रत अली को भी कोई तकलीफ़ न पहुंचे। (अल-बिदाया वल-निहाया 11/193)
बिलकुल सही, ये लोग अहले बैत से मोहब्बत करते थे और अहले बैत भी इनसे मोहब्बत करते थे। हज़रत अली के बेटों में हसन और हुसैन के अलावा अबू बक्र, उमर और उस्मान भी हैं। हसन और हुसैन की औलाद में भी अबू बक्र और उमर मौजूद हैं, बल्कि कर्बला में हुसैन के साथ अली के बेटे अबू बक्र और उस्मान, हसन के बेटे अबू बक्र और उमर और हुसैन के बेटे उमर भी शहीद हुए।
शिया की तो बात छोड़ें, मुसलमानों का एक मख़सूस तबक़ा (विशेष वर्ग) भी शिआ की तरह अली और हुसैन की मोहब्बत में ग़ुलू करता है और दूसरे मुसलमानों को, ख़ुसूसन अहले हदीस को अहले बैत का गुस्ताख़ कहता है और अहले हदीस उलेमा को नासबी कहकर पुकारता है। अहले हदीस जमात मन्हज सलफ़ पर गामज़न है, वे न ग़ुलू करती है और न ही अहले बैत, औलिया, सालिहीन और इमामों की शान में ग़ुस्ताख़ी करती है। यह जमात उन लोगों को वही मक़ाम देती है जो अल्लाह और उसके रसूल ने दिया है।
हज़रत अली का मक़ाम अबू बक्र, उमर और उस्मान के बाद है, अहले हदीस वही मक़ाम देते हैं। ये एक इंसान थे, इंसान ही मानते हैं, जबकि ग़ुलू करने वाले अली को मुश्किल कुशा कहते हैं और उलूहियत के मक़ाम पर फ़ाइज़ कर देते हैं, यह सरासर शिर्क है, ऐसा अक़ीदा रखने वाला मुशरिक हो जाता है।
सहीह हदीसों में हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के बेनज़ीर फ़ज़ाइल हैं, मगर ग़ुलू करने वालों ने, विशेषकर रवाफ़िज़ ने आपकी शान में इस क़दर झूठी हदीसें गढ़ी हैं कि इस क़दर झूठी हदीसें किसी और सहाबी के बारे में नहीं गढ़ी गईं। इस वजह से फ़ज़ाइल अली में हमें जब भी कोई हदीस मिले तो पहले उसकी सेहत जानें कि क्या यह हदीस सही है या ज़ईफ़ है?
हज़रत हुज़ैफा रज़ियल्लाहु अन्हु को मुख़ातिब करते हुए हज़रत फ़ातिमा और हसन और हुसैन के बारे में नबी ﷺ फ़रमाते हैं:
إنَّ هذا ملَكٌ لم ينزلِ الأرضَ قطُّ قبلَ اللَّيلةِ استأذنَ ربَّهُ أن يسلِّمَ عليَّ ويبشِّرَني بأنَّ فاطمةَ سيِّدةُ نساءِ أَهْلِ الجنَّةِ وأنَّ الحسَنَ والحُسَيْنَ سيِّدا شبابِ أَهْلِ الجنَّةِ(صحيح الترمذي:3781)
तर्जमा: यह एक फ़रिश्ता था जो इस रात से पहले ज़मीन पर कभी नहीं उतरा था। उसने अपने रब से मुझे सलाम करने और यह ख़ुशख़बरी देने की इजाज़त मांगी कि फ़ातिमा जन्नती औरतो की सरदार हैं और हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा जन्नत के नौजवानों (यानि जो दुनिया में जवान थे) के सरदार हैं।
माँ की तरह उनके दोनों बेटे भी जन्नतियों के सरदार हैं। यह बहुत बड़ी फ़ज़ीलत है। इसके अलावा, हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि पैगंबर ﷺ ने मुसलमानों को हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु, हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा, और हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा से मोहब्बत की तरग़ीब दी है। अली से मुताल्लिक़ मोहब्बत वाली हदीस ऊपर गुज़र चुकी है, फ़ातिमा से मुताल्लिक़ आपका फ़रमान है:
إنَّما فَاطِمةُ بَضعَةٌ منِّي يؤذيني ما آذَاها وينصِبني ما أنصبَها(صحيح الترمذي:3869)
तर्जमा: फ़ातिमा मेरे जिस्म (शरीर) का टुकड़ा है, मुझे तकलीफ़ देती है वह चीज़ जो उसे तकलीफ़ देती है, और "तअब" में डालती है मुझे वह चीज़ जो उसे "तअब" में डालती है।
औसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि मैं एक रात किसी ज़रूरत से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम निकले तो आप एक ऐसी चीज़ लपेटे हुए थे जिसे मैं नहीं पहचान पा रहा था कि क्या है। फिर जब मैं अपनी ज़रूरत से फ़ारिग़ हुआ तो मैंने पूछा: यह क्या है जिसे आप लपेटे हुए हैं? तो आपने उसे खोला, तो वह हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा थे, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कुल्हे से चिपके हुए थे, फिर आपने फ़रमाया:
هذانِ ابنايَ وابنا ابنتيَ ، اللَّهمَّ إنِّي أحبُّهما فأحبَّهما وأحبَّ مَن يحبُّهما(صحيح الترمذي:3769)
तर्जमा: ये दोनों मेरे बेटे और मेरे नवासे हैं। ऐ अल्लाह! मैं इन दोनों से मोहब्बत करता हूँ, तू भी इनसे मोहब्बत कर और उससे भी मोहब्बत कर जो इनसे मोहब्बत करे।
इन चारों (अली, फ़ातिमा, हसन, हुसैन) से जिस तरह हम मोहब्बत करेंगे, उसी तरह अहले बैत के दीगर अफ़राद (अन्य व्यक्तियों) से भी मोहब्बत करना ईमान कहलाएगा। ऐसा नहीं है कि इनसे मोहब्बत के इज़हार में ज़मीन और आसमान को मिला दें और फ़ातिमा के अलावा दीगर बेटियाँ, उम्मुल मोमिनीन और बनु हाशिम और बनु मुत्तलिब के दीगर मुसलमानों के लिए दिल में तंगी महसूस करें।
और आज ऐसा ही हो रहा है, रवाफ़िज़ उम्मुल मोमिनीन सय्यदा आयशा को गंदी गालियाँ देते हैं, फ़ातिमा के अलावा दूसरी बेटियों की तौहीन करते हैं, अबू बक्र, उमर, उस्मान और अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु ताअला अन्हुम अजमईन पर लानत और गालियाँ देते हैं। इनसे मुतास्सिर (प्रभावित) होकर बहुत से मुसलमान भी अहले बैत की आड़ में सहाबा-ए-किराम को निशाना बनाते हैं। उनके बारे में नाजायज़ और गुस्ताख़ाना अल्फ़ाज़ इस्तेमाल करते हैं। अल्लाह ताआला सभी सहाबा से राज़ी हो गया तो हमें भी सभी सहाबा से मोहब्बत करनी चाहिए चाहे वे अहले बैत में से हों या नहीं।
सहाबा से मोहब्बत करना ईमान की निशानी और पहचान है और उन्हें गाली देने वाला अल्लाह की लानत का हक़दार है।
~ Shaikh Maqubool Ahmad Salafi hafizahullah
अहले बैत कौन हैं, पहले ये बात जान लेते हैं क्योंकि आम अवाम की अक्सरियत को अहले बैत का भी सही इल्म नहीं है। अहले बैत का मतलब घराने वाले, इससे मुराद नबी ﷺ के वो तमाम घर वाले जिन पर सदक़ा हराम है। इनमें आपकी औलाद (ज़ैनब, रुक़ैया, उम्मे कुलसूम और फ़ातिमा), नाती-नातिन, आपके चाचा (हमज़ा और अब्बास), आपकी फूफी (सफ़िया), आपकी तमाम बीवियाँ (ख़दीजा, आयशा, सऊदा, हफ़्सा, उम्मे सलमा, ज़ैनब बिन्त ख़ुज़ैमा, जुवैरिया, सफ़िया, उम्मे हबीबा, मैमूना और ज़ैनब बिन्त जहश) और बनू हाशिम के सारे मुसलमान मर्द और औरत शामिल हैं।
नबी ﷺ की बेटियाँ अहले बैत में हैं, इसकी दलील की ज़रूरत नहीं है। हालांकि चाचा भी अहले बैत में से हैं, इसकी ख़ास दलील ज़िक्र करता हूँ। नबी ﷺ के चाचा हारिस के बेटे रबीआ और रबीआ के बेटे अब्दुल मुत्तलिब जो कि सहाबी हैं और उनसे हदीस भी मरवी है। ये (अब्दुल मुत्तलिब बिन रबीआ) और नबी ﷺ के चाचा अब्बास रज़ी अल्लाहु अन्हु के बेटे फ़ज़्ल, दोनों आपकी ख़िदमत में हाज़िर हुए और कहा कि हमें माल सदक़ा पर आमिल/मज़दूर मुक़र्रर करलें ताकि इस कमाई से शादी की तैयारी कर सकें तो आप ﷺ ने फ़रमाया:
إنَّ الصَّدَقَةَ لا تَنْبَغِي لِآلِ مُحَمَّدٍ إنَّما هي أَوْسَاخُ النَّاسِ(صحيح مسلم:1072)
तर्जमा: आल-ए-मुहम्मद के लिए सदक़ा हलाल नही, यह तो लोगों (के माल) का मेल-कुचैल हैं।
सहीह बुख़ारी में है कि ख़ैबर के ख़ुमुस में से नबी ﷺ ने बनू हाशिम और बनू मुत्तलिब को दिया और दूसरे क़ुरैश को न दिया। तो ज़ुबैर बिन मुत्तिम और उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु अन्हुमा नबी ﷺ के पास आए और अर्ज़ की कि आपने बनू मुत्तलिब को तो माल दिया मगर हमें नज़रअंदाज़ कर दिया जबकि हम और वो आपसे एक ही दर्जे की क़राबत रखते हैं। इस पर आप ﷺ ने फ़रमाया:
«إِنَّمَا بَنُو المُطَّلِبِ، وَبَنُو هَاشِمٍ شَيْءٌ وَاحِدٌ»(صحیح البخاری:3140)
तर्जमा: बनू मुत्तलिब और बनू हाशिम तो एक ही चीज़ है।
एक रिवायत में यह इज़ाफ़ा है कि हज़रत ज़ुबैर बिन मुत्तिम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा कि नबी करीम ﷺ ने बनू शम्स और बनू नौफल को नहीं दिया था।
बनू हाशिम, बनू मुत्तलिब, बनू शम्स और बनू नौफल ये आपस में चार भाई थे मगर आपने सिर्फ़ दो को ख़ुमुस दिया और इन दोनों को एक क़रार दिया। इस वजह से कुछ अहले इल्म ने यह इस्तिदलाल किया है कि अहले बैत में जिन पर सदक़ा हराम है, उनमें बनू हाशिम के साथ बनू मुत्तलिब भी हैं, यानी बनू हाशिम की तरह बनू मुत्तलिब भी अहले बैत में शामिल हैं।
मुस्लिम शरीफ़ में एक रिवायत है जिससे शिया, अवाम को यह धोखा देते हैं कि अज़वाज मुतह्हरात आल-ए-बैत में से नहीं हैं। वह रिवायत इस तरह से आई है।
فَقُلْنَا: مَنْ أَهْلُ بَيْتِهِ؟ نِسَاؤُهُ؟ قَالَ: لَا(مسلم:2408)
इस टुकड़े का तर्जमा (अनुवाद) किया जाता है "हमने कहा आल-ए-बैत कौन लोग हैं, नबी ﷺ की बीवियाँ? तो उन्होंने कहा कि नहीं।
इसका असल तर्जमा और मतलब इस तरह है कि हमने उनसे पूछा: आपके अहले बैत कौन हैं? (सिर्फ़) आपकी अज़्वाज? तो उन्होंने कहा कि (सिर्फ़ आपकी अज़्वाज) नहीं। यानी आपकी ﷺ की अज़्वाज के अलावा और दूसरे भी आल-ए-बैत में शामिल हैं। चुनांचे सहीह मुस्लिम में ही इससे पहले वाली हदीस के अल्फ़ाज़ हैं।
"فَقَالَ لَهُ حُصَيْنٌ: وَمَنْ أَهْلُ بَيْتِهِ؟ يَا زَيْدُ أَلَيْسَ نِسَاؤُهُ مِنْ أَهْلِ بَيْتِهِ؟ قَالَ: نِسَاؤُهُ مِنْ أَهْلِ بَيْتِهِ "
यानि और हुसैन ने कहा कि ऐ ज़ैद! आप ﷺ के अहले बैत कौन हैं, क्या आप ﷺ की अज़्वाज-ए-मुतह्हरात अहले बैत नहीं हैं? सय्यदना ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि अज़्वाज-ए-मुतह्हरात भी अहले बैत में दाख़िल हैं।
सहीह मुस्लिम की एक और रिवायत से धोखा दिया जाता है कि क़ुरआन में मज़कूर अहले बैत की तफ़सीर में सिर्फ़ चार लोग ही शामिल हैं, वो अली, फ़ातिमा और हसन-हुसैन हैं। रिवायत इस तरह से है: उम्मुल मोमिनीन आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं:
خَرَجَ النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ غَدَاةً وَعَلَيْهِ مِرْطٌ مُرَحَّلٌ، مِنْ شَعْرٍ أَسْوَدَ، فَجَاءَ الْحَسَنُ بْنُ عَلِيٍّ فَأَدْخَلَهُ، ثُمَّ جَاءَ الْحُسَيْنُ فَدَخَلَ مَعَهُ، ثُمَّ جَاءَتْ فَاطِمَةُ فَأَدْخَلَهَا، ثُمَّ جَاءَ عَلِيٌّ فَأَدْخَلَهُ، ثُمَّ قَالَ: " {إِنَّمَا يُرِيدُ اللهُ لِيُذْهِبَ عَنْكُمُ الرِّجْسَ أَهْلَ الْبَيْتِ وَيُطَهِّرَكُمْ تَطْهِيرًا} [الأحزاب: 33] "(صحیح مسلم:2424)
तर्जमा: रसूलुल्लाह ﷺ सुबह को निकले और आप ﷺ एक चादर ओढ़े हुए थे जिस पर कजावों की सूरतें या हांडियों की सूरतें बनी हुई थीं। इतने में सय्यदना हसन रज़ियल्लाहु अन्हु आए तो आप ﷺ ने उनको इस चादर के अंदर कर लिया। फिर सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु आए तो उनको भी इसमें शामिल कर लिया। फिर सय्यदा फातिमातुज़्ज़हरा रज़ियल्लाहु अन्हा आईं तो उनको भी इन्हीं के साथ शामिल कर लिया। फिर सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु आए तो उनको भी शामिल करके फ़रमाया कि "अल्लाह तआला चाहता है कि तुमसे नापाकी को दूर करे और तुम्हें पाक करे, ऐ घर वालो।"
इस हदीस में चार अफ़राद के ज़िक्र का हरगिज़ मतलब नहीं कि अहले बैत में इन चार के अलावा दूसरे अफ़राद शामिल नहीं हैं। आयत में असल ख़िताब अज़वाज मुतह्हरात को है, इस वजह से वो क़तई तौर पर अहले बैत में शामिल हैं जैसा कि ऊपर सहीह मुस्लिम की सरीह हदीस भी गुज़री है और भी दीगर दलाइल-ओ-शवाहिद हैं कि आप ﷺ की बीवियां और चाचा सब भी अहले बैत में हैं। सय्यदा आयशा के पास ख़ालिद बिन सईद ने सदक़े के तौर पर गाय भेजी तो उन्होंने कहा कि बेशक हम आल-ए-मुहम्मद के लिए सदक़ा हलाल नहीं है। (मुसन्निफ़ इब्न अबी शैबा: 10708) और अब्बास और रबीआ के बेटों को नबी ﷺ ने सदक़ा की कमाई से निकाह न करके माल ख़ुमुस से निकाह कराया था जिसका ज़िक्र भी ऊपर हो चुका है।
अहले बैत के मक़ाम-ओ-मर्तबा को उजागर करते हुए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इर्शाद फ़रमाया:
إِنَّمَا يُرِيدُ اللَّهُ لِيُذْهِبَ عَنكُمُ الرِّجْسَ أَهْلَ الْبَيْتِ وَيُطَهِّرَكُمْ تَطْهِيرًا (الأحزاب:33)
तर्जमा: अल्लाह तआला यही चाहता है कि ऐ नबी के घरवालियो! तुमसे हर क़िस्म की गंदगी को दूर कर दे और तुम्हें ख़ूब पाक कर दे।
इस आयत की रोशनी में अहले बैत, ख़ासकर अज़वाज मुतह्हरात की पाकीज़गी, आला फ़ज़ीलत और बुलंद मक़ाम-ओ-मर्तबा का पता चलता है। हज़रत वासिला बिन अस्क़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बयान करते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को यह फ़रमाते हुए सुना:
إنَّ اللَّهَ اصْطَفَى كِنانَةَ مِن ولَدِ إسْماعِيلَ، واصْطَفَى قُرَيْشًا مِن كِنانَةَ، واصْطَفَى مِن قُرَيْشٍ بَنِي هاشِمٍ، واصْطَفانِي مِن بَنِي هاشِمٍ.(صحيح مسلم:2276)
तर्जमा: अल्लाह तआला ने हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की औलाद में से क़िनानाह को चुन लिया और क़िनानाह में से क़ुरैश को चुना और क़ुरैश में से बनू हाशिम को चुना और बनू हाशिम में से मुझे चुना।
ग़दीर ख़ुम के मक़ाम पर अपने ख़िताब में किताबुल्लाह की तर्ग़ीब और तमस्सुक के बाद आप ﷺ का तीन बार यह कहना बड़ी अहमियत का हामिल है।
أُذَكِّرُكُمُ اللَّهَ في أَهْلِ بَيْتِي، أُذَكِّرُكُمُ اللَّهَ في أَهْلِ بَيْتِي، أُذَكِّرُكُمُ اللَّهَ في أَهْلِ بَيْتي(صحيح مسلم:2408)
तर्जमा: मैं अल्लाह की याद दिलाता हूँ तुमको अपने अहले बैत के बाब में, मैं अल्लाह की याद दिलाता हूँ तुमको अपने अहले बैत के बाब में, मैं अल्लाह की याद दिलाता हूँ तुमको अपने अहले बैत के बाब में।
सहीह मुस्लिम में सआद बिन वक़ास से मरवी है:
وَلَمَّا نَزَلَتْ هذِه الآيَةُ: {فَقُلْ تَعَالَوْا نَدْعُ أَبْنَاءَنَا وَأَبْنَاءَكُمْ} دَعَا رَسولُ اللهِ صَلَّى اللَّهُ عليه وَسَلَّمَ عَلِيًّا وَفَاطِمَةَ وَحَسَنًا وَحُسَيْنًا فَقالَ: اللَّهُمَّ هَؤُلَاءِ أَهْلِي.(صحيح مسلم:2404)
तर्जमा: और जब यह आयत उतरी «نَدْعُ أَبْنَاءَنَا وَأَبْنَاءَكُمْ» "हम अपने बेटों को और तुम अपने बेटों को बुलाओ।" (यानि आयत मुबाहिला) तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु और सय्यदा फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा और हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा को बुलाया, फिर फ़रमाया: या अल्लाह! ये मेरे अहल हैं।
नबी ﷺ का फ़रमान है:
كلُّ سَبَبٍ و نَسَبٍ مُنْقَطِعٌ يومَ القيامةِ ، إلَّا سَبَبي و نَسَبي(السلسلة الصحيحة:2036)
तर्जमा: क़यामत के दिन हर वास्ता और नसबी ताल्लुक़ ख़त्म हो जायेगा अलबत्ता मेरा वास्ता और नसबी ताल्लुक़ क़ाइम रहेगा।
क़ुरआन की आयत से भी यह मफ़हूम वाज़ेह होता है, अल्लाह का फ़रमान है:
فَإِذَا نُفِخَ فِي الصُّورِ فَلَا أَنسَابَ بَيْنَهُمْ يَوْمَئِذٍ وَلَا يَتَسَاءَلُونَ (المومنون:101)
तर्जमा: पस जब सूर फूंक दिया जाएगा उस दिन न तो आपसी रिश्ते ही रहेंगे, न आपसी पूछताछ।
अहले बैत के बड़े फ़ज़ाइल मिलते हैं, ये अहले बैत से मुताल्लिक़ कुछ फ़ज़ाइल थे। अगर फ़र्दा-फ़र्दा रसूल के अहले बैत के फ़ज़ाइल बयान किए जाएं तो कई किताबें तैयार हो जाएंगी। अहले इल्म ने अलग-अलग तरीक़ों से फ़ज़ाइल बयान किए हैं। मुहद्दिसीन ने किताबुल हदीस में नामों से बाब क़ाइम किया है जबकि सीरत निगारों ने अलग-अलग मुस्तक़िल किताबें भी तर्तीब दी हैं।
बहर-कैफ़ (बहरहाल)! अहले बैत ज़मीन पर पाक हस्तियों का नाम है, उनकी इज़्ज़त-ओ-तौक़ीर, उनका इज़्ज़त-ओ-तक़द्दुस और उनसे मोहब्बत-ओ-अक़ीदत मुसलमानों का हिस्सा-ईमान है और जो अहले बैत में से किसी भी फ़र्द से भी अदावत रखता है, वो मुनाफ़िक़ और नासबी है।
قالَ عَلِيٌّ: والذي فَلَقَ الحَبَّةَ، وبَرَأَ النَّسَمَةَ، إنَّه لَعَهْدُ النبيِّ الأُمِّيِّ صَلَّى اللَّهُ عليه وسلَّمَ إلَيَّ: أنْ لا يُحِبَّنِي إلَّا مُؤْمِنٌ، ولا يُبْغِضَنِي إلَّا مُنافِقٌ.(صحيح مسلم:78)
तर्जमा: सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: क़स्म है उस पर जिसने दाना चीर दिया (फिर उसने घास उगाई) और जान बनाई। रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व ने मुझसे अहद किया था कि मुझसे मोहब्बत नहीं रखेगा मगर मोमिन और मुझसे दुश्मनी नहीं रखेगा मगर मुनाफ़िक़
यह मज़मून जिस मक़सद के तहत लिखा हूँ वो यह है कि लोग अहले बैत को जानें कि कौन-कौन लोग इसमें शामिल हैं फिर उन नुफ़ूस क़ुद्सिया की तौक़ीर उसी तरह अदा करें जैसे कि क़ुरआन और हदीस में हमारी रहनुमाई की गई है। न तो उनकी शान में गुस्ताख़ी करें जैसे नवासिब और ख़्वारिज करते हैं और न ही ग़ुलू करें जैसे शिआ और राफ़िज़ करते हैं। उम्मत मोहम्मदीया में रसूलुल्लाह ﷺ के बाद सबसे अफ़ज़ल हस्ती अबू बक्र फिर उमर फिर उस्मान हैं जैसा कि सय्यदना अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है:
كنا نقولُ ورسولُ اللهِ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّم حَيٌّ : أفضلُ أمةِ النبيِّ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّم بعدَه أبو بكرٍ، ثم عمرُ، ثم عثمانُ(صحيح أبي داود:4628)
तर्जमा: हम कहा करते थे जबकि रसूलुल्लाह ﷺ ज़िन्दा थे: नबी करीम ﷺ की उम्मत में आप ﷺ के बाद सबसे अफ़ज़ल अबू बक्र हैं, फिर उमर और फिर उस्मान रज़ी अल्लाहु अन्हु।
यह अक़ीदा न सिर्फ़ आम सहाबा का था बल्कि हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु भी यही मानते और अक़ीदा रखते थे। चुनांचे सय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हु के बेटे मोहम्मद बिन हनफ़िय्या से मरवी है कि वह कहते हैं कि मैंने अपने वालिद से पूछा:
أَيُّ الناسِ خيرٌ بعد رسولِ اللهِ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّم ؟ قال : أبو بكرٍ، قال : قلتُ : ثُمَّ مَن ؟ قال : ثم عمرُ، قال : ثم خَشِيتُ أن أقولَ : ثُمَّ مَن فيقولُ : عثمانُ . فقلتُ : ثم أَنْتَ يا أَبَةِ ؟ قال : ما أنَا إلا رجلٌ من المسلمينَ(صحيح أبي داود:4629)
तर्जमा: रसूलुल्लाह ﷺ के बाद सबसे अफ़ज़ल कौन है? उन्होंने कहा हज़रत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु। मैंने कहा: फिर कौन? कहा हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु। फिर मुझे डर हुआ कि अगर मैंने पूछा कि उनके बाद कौन है तो वे कहेंगे हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु। तो मैंने ख़ुद ही कह दिया: फिर तो आप ही हो अब्बा जान! वे कहने लगे कि मैं तो मुसलमानों में से एक आम आदमी हूँ।
शिआ के यहाँ यह तर्तीब नहीं है। वे अली रज़ियल्लाहु अन्हु को ही पहला नंबर देते हैं और ख़ुलफ़ा-ए-सोलासा अबू बक्र, उमर, और उस्मान के ख़िलाफ़ बदज़बानी करते हैं, गालियाँ देते हैं, इस क़दर अदावत है कि इन नामों पर अपने बच्चों का नाम भी नहीं रखते, और चार लोग (अली, फ़ातिमा, हसन, हुसैन) के अलावा अहले बैत में किसी को तस्लीम नहीं करते।
अमीरुल मोमिनीन सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक़ की अहले बैत से मोहब्बत देखें:
والذي نَفْسِي بيَدِهِ لَقَرابَةُ رَسولِ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عليه وسلَّمَ أحَبُّ إلَيَّ أنْ أصِلَ مِن قَرابَتِي(صحيح البخاري:4240)
तर्जमा: उस ज़ात की क़स्म! जिसकी हाथ में मेरी जान है, रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की क़राबत के साथ सिला-ए-रहिमी मुझे अपनी क़राबत से सिला-ए-रहिमी से ज़्यादा अज़ीज़ है।
उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु, अल्लाह से दुआ करते हुए कहते हैं:
اللَّهُمَّ إنَّا كُنَّا نَتَوَسَّلُ إلَيْكَ بنَبِيِّنَا صَلَّى اللهُ عليه وسلَّمَ فَتَسْقِينَا، وإنَّا نَتَوَسَّلُ إلَيْكَ بعَمِّ نَبِيِّنَا فَاسْقِنَا۔(صحيح البخاري:3710)
तर्जमा: ऐ अल्लाह, पहले हम अपने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से बारिश की दुआ कराते थे तू हमें सैराबी अता करता था और अब हम अपने नबी के चाचा (अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब) के ज़रिए बारिश की दुआ करते हैं।
और सय्यदना उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु का हाल देखें, जब वे अपने घर में घेर लिए गए थे तो उस वक्त वहां हसन आपकी हिफ़ाज़त (रक्षा) के लिए तलवार के साथ मौजूद थे और लड़ना चाहते थे, मगर हज़रत उस्मान ने अल्लाह का वास्ता देकर उन्हें अपने घर भेज दिया ताकि उन्हें कोई तकलीफ़ न पहुंचे और हज़रत अली को भी कोई तकलीफ़ न पहुंचे। (अल-बिदाया वल-निहाया 11/193)
बिलकुल सही, ये लोग अहले बैत से मोहब्बत करते थे और अहले बैत भी इनसे मोहब्बत करते थे। हज़रत अली के बेटों में हसन और हुसैन के अलावा अबू बक्र, उमर और उस्मान भी हैं। हसन और हुसैन की औलाद में भी अबू बक्र और उमर मौजूद हैं, बल्कि कर्बला में हुसैन के साथ अली के बेटे अबू बक्र और उस्मान, हसन के बेटे अबू बक्र और उमर और हुसैन के बेटे उमर भी शहीद हुए।
शिया की तो बात छोड़ें, मुसलमानों का एक मख़सूस तबक़ा (विशेष वर्ग) भी शिआ की तरह अली और हुसैन की मोहब्बत में ग़ुलू करता है और दूसरे मुसलमानों को, ख़ुसूसन अहले हदीस को अहले बैत का गुस्ताख़ कहता है और अहले हदीस उलेमा को नासबी कहकर पुकारता है। अहले हदीस जमात मन्हज सलफ़ पर गामज़न है, वे न ग़ुलू करती है और न ही अहले बैत, औलिया, सालिहीन और इमामों की शान में ग़ुस्ताख़ी करती है। यह जमात उन लोगों को वही मक़ाम देती है जो अल्लाह और उसके रसूल ने दिया है।
हज़रत अली का मक़ाम अबू बक्र, उमर और उस्मान के बाद है, अहले हदीस वही मक़ाम देते हैं। ये एक इंसान थे, इंसान ही मानते हैं, जबकि ग़ुलू करने वाले अली को मुश्किल कुशा कहते हैं और उलूहियत के मक़ाम पर फ़ाइज़ कर देते हैं, यह सरासर शिर्क है, ऐसा अक़ीदा रखने वाला मुशरिक हो जाता है।
सहीह हदीसों में हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के बेनज़ीर फ़ज़ाइल हैं, मगर ग़ुलू करने वालों ने, विशेषकर रवाफ़िज़ ने आपकी शान में इस क़दर झूठी हदीसें गढ़ी हैं कि इस क़दर झूठी हदीसें किसी और सहाबी के बारे में नहीं गढ़ी गईं। इस वजह से फ़ज़ाइल अली में हमें जब भी कोई हदीस मिले तो पहले उसकी सेहत जानें कि क्या यह हदीस सही है या ज़ईफ़ है?
हज़रत हुज़ैफा रज़ियल्लाहु अन्हु को मुख़ातिब करते हुए हज़रत फ़ातिमा और हसन और हुसैन के बारे में नबी ﷺ फ़रमाते हैं:
إنَّ هذا ملَكٌ لم ينزلِ الأرضَ قطُّ قبلَ اللَّيلةِ استأذنَ ربَّهُ أن يسلِّمَ عليَّ ويبشِّرَني بأنَّ فاطمةَ سيِّدةُ نساءِ أَهْلِ الجنَّةِ وأنَّ الحسَنَ والحُسَيْنَ سيِّدا شبابِ أَهْلِ الجنَّةِ(صحيح الترمذي:3781)
तर्जमा: यह एक फ़रिश्ता था जो इस रात से पहले ज़मीन पर कभी नहीं उतरा था। उसने अपने रब से मुझे सलाम करने और यह ख़ुशख़बरी देने की इजाज़त मांगी कि फ़ातिमा जन्नती औरतो की सरदार हैं और हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा जन्नत के नौजवानों (यानि जो दुनिया में जवान थे) के सरदार हैं।
माँ की तरह उनके दोनों बेटे भी जन्नतियों के सरदार हैं। यह बहुत बड़ी फ़ज़ीलत है। इसके अलावा, हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि पैगंबर ﷺ ने मुसलमानों को हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु, हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा, और हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा से मोहब्बत की तरग़ीब दी है। अली से मुताल्लिक़ मोहब्बत वाली हदीस ऊपर गुज़र चुकी है, फ़ातिमा से मुताल्लिक़ आपका फ़रमान है:
إنَّما فَاطِمةُ بَضعَةٌ منِّي يؤذيني ما آذَاها وينصِبني ما أنصبَها(صحيح الترمذي:3869)
तर्जमा: फ़ातिमा मेरे जिस्म (शरीर) का टुकड़ा है, मुझे तकलीफ़ देती है वह चीज़ जो उसे तकलीफ़ देती है, और "तअब" में डालती है मुझे वह चीज़ जो उसे "तअब" में डालती है।
औसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि मैं एक रात किसी ज़रूरत से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम निकले तो आप एक ऐसी चीज़ लपेटे हुए थे जिसे मैं नहीं पहचान पा रहा था कि क्या है। फिर जब मैं अपनी ज़रूरत से फ़ारिग़ हुआ तो मैंने पूछा: यह क्या है जिसे आप लपेटे हुए हैं? तो आपने उसे खोला, तो वह हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा थे, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कुल्हे से चिपके हुए थे, फिर आपने फ़रमाया:
هذانِ ابنايَ وابنا ابنتيَ ، اللَّهمَّ إنِّي أحبُّهما فأحبَّهما وأحبَّ مَن يحبُّهما(صحيح الترمذي:3769)
तर्जमा: ये दोनों मेरे बेटे और मेरे नवासे हैं। ऐ अल्लाह! मैं इन दोनों से मोहब्बत करता हूँ, तू भी इनसे मोहब्बत कर और उससे भी मोहब्बत कर जो इनसे मोहब्बत करे।
इन चारों (अली, फ़ातिमा, हसन, हुसैन) से जिस तरह हम मोहब्बत करेंगे, उसी तरह अहले बैत के दीगर अफ़राद (अन्य व्यक्तियों) से भी मोहब्बत करना ईमान कहलाएगा। ऐसा नहीं है कि इनसे मोहब्बत के इज़हार में ज़मीन और आसमान को मिला दें और फ़ातिमा के अलावा दीगर बेटियाँ, उम्मुल मोमिनीन और बनु हाशिम और बनु मुत्तलिब के दीगर मुसलमानों के लिए दिल में तंगी महसूस करें।
और आज ऐसा ही हो रहा है, रवाफ़िज़ उम्मुल मोमिनीन सय्यदा आयशा को गंदी गालियाँ देते हैं, फ़ातिमा के अलावा दूसरी बेटियों की तौहीन करते हैं, अबू बक्र, उमर, उस्मान और अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु ताअला अन्हुम अजमईन पर लानत और गालियाँ देते हैं। इनसे मुतास्सिर (प्रभावित) होकर बहुत से मुसलमान भी अहले बैत की आड़ में सहाबा-ए-किराम को निशाना बनाते हैं। उनके बारे में नाजायज़ और गुस्ताख़ाना अल्फ़ाज़ इस्तेमाल करते हैं। अल्लाह ताआला सभी सहाबा से राज़ी हो गया तो हमें भी सभी सहाबा से मोहब्बत करनी चाहिए चाहे वे अहले बैत में से हों या नहीं।
सहाबा से मोहब्बत करना ईमान की निशानी और पहचान है और उन्हें गाली देने वाला अल्लाह की लानत का हक़दार है।
~ Shaikh Maqubool Ahmad Salafi hafizahullah
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