جمعرات، 28 اپریل، 2016

तरावीह के ताल्लुक़ से चंद सवालात

तरावीह के ताल्लुक़ से चंद सवालात
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Written by: मक़बूल अहमद सल्फ़ी

सवाल नंबर 1: आठ रकअत तरावीह ?
जवाब: तरावीह आठ रकअत से अधिक रसूल सेसाबित नहीं।
दलील
(मुस्लिम व सही बुखारी: जिल्द1,हदीस संख्या 1887)
अबोसलमह बिन अब्दुर्रहमान से रिवायत करते हैं कि वह (अबोसलमह) हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से पूछा रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रात की नमाज़ रमज़ान में कैसी थी। उन्होंने कहा कि रमज़ान में और रमज़ान के अलावा ग्यारह रकतो से अधिक न पढ़ते थे। चार रकअतें पढ़ते थे। उनके आयाम हसन को न पूछो। फिर चार रकतेें पढ़ते जिनके आयाम हसन का क्या कहना। फिर तीन रकितें पढ़ते थे।
सवाल नंबर 2: तरावीह बाजामाअत?
जवाब: नबी से तरावीह की नमाज़ बाजमाअत पढ़ना कई सही हदीसों से साबित है,
बराए नमूना एक हदीस:
हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूल अल्लाह (स.अ.व.) ने हम लोगों को रमजान के महीने में (तरावीह) आठ रकअत नमाज़ पढ़ाई के बाद में वित्र पढ़ा दूसरे दिन जब रात हुई तो हम लोग फिर मस्जिद में इकट्ठा हुए उम्मीद है कि आप निकलेंगे और हमे नमाज़ पढ़ाएँ करेंगे लेकिन आप न निकले हम सुबह तक मस्जिद में रह गए तो हम लोग रसूल अल्लाह (स.अ.व.) की ख़िदमत में हाज़िर हुए और यह बात बताई तो रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने कहा कि मुझे खतरा हुआ कि कहीं यह नमाज़ तुम लोगों पर फ़र्ज़ न हो जाये (इसलिए मैं घर से नहीं निकला)
() (ابنِ حبان ،ابنِ خزیمہ،طبرانی فی الصغیر،محمد بن نصر مروزی فی قیام اللیل ص ۹۰)
सवाल नंबर 3: पूरे महीने तरावीह पढ़ना ?
जवाब: नबी ने खुद तो यह नमाज़ हमेशा पढ़ी जैसा हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस से साफ़ है, लेकिन रमज़ान में तीन दिन, साथियों को भी जमाअत के साथ पढ़ाई।
इस पर यह सवाल कि फ़िर हम महीने भर क्यों पढ़ते हैं? '' तो इसका जवाब यह है कि आप की इच्छा बहरहाल महीने भर यह नमाज़ पढ़ाने की थी। इसके बावजूद यदि आप तीन दिन से अधिक नहीं पढ़ाई, तो इसकी वजह भी आप खुद ही बयान फ़रमा दी:
(صحیح بخاری، کتاب الصوم، باب فضل من قام رمضان)
कि '' (अल्लाह तआला के यहां यह अमल बेहद पसंदीदा होने आधार पर) में डरता हूँ कि कहीं यह तुम परफरज़ न हो और तम (इस की अदायगी) से आजिज़ रह जाओ। ''
इसका साफ़ मतलब है कि अगर यह फ़र्ज़ हो जाने का डर आप को न होता तो आप महीने भर यह नमाज़ पढ़ाते. लिहाज़ा जब यह वजह ज़ाइल हो गई, तो उसके बाद आप की इच्छा के आधार पर महीने भर ये नमाज़ बा जमाअत अदा करना सुन्नत है।
सवाल नंबर 4: हर मस्जिद में तरावीह पढ़ना?
जावाब: जब तरावीह पढ़ने का सबूत मिलता है और पूरे महीने पढ़ने की मशरूयत साबित है और तरावीह की मक़ाम ओ फ़ज़ीलत भी अपनी जगह मुस्लिम है तो हर जगह पढ़ी जाएगी। जहां लोग नमाज़ अदा करते हैं वहाँ तरावीह की नमाज़ जमात से पूरे रमजान पढ़ सकते हैं।
सवाल नंबर 5: तरावीह में खत्म कुरान ?
जवाब: तरावीह में पूरा कुरान खत्म करना जरूरी नहीं है, और न ही हमारे किसी आलिमे दीन ने क़ुरान करीम को खत्म करना वाजिब क़रार दिया है लेकिन हाफिज कुरान हो तो पूरा कुरान खत्म करना बेहतर है।
सवाल नंबर 6: तरावीह दो रकअत करके पढ़ना?
उत्तर: इब्न उमर रज़ियल्लाहु िनहमा बताते हैं कि एक व्यक्ति ने रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रात की नमाज के विषय में पूछा तो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: "रात की नमाज़ दो दो रकअत है और अगर तुम्हें महसूस हो कि फजर होने को है तो एक रकअत वितर अदा कर ले। "(सही बुखारी : 946 सही मुस्लिम : 749)।
सवाल 7: ईशा की नमाज़ के बाद तरावीह पढ़ना ?
जवाब: इसमें किसी का इख़्तेलाफ नहीं कि तहज्जुद का वक़्त ईशा के बाद से लेकर सुबह तक है और हम लोग उसी समय के अंदर तरावीह की नमाज़ पढ़ते हैं।
दलील भी मुलाहिज़ा फरमाएं।
सही मुस्लिम में उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा रिवायत करती हैं कि आप (स.अ.व.) ने रात के हर हिस्से में तहज्जुद की नमाज़ पढ़ी है। कभी शुरू रात में, कभी बीच रात में और कभी आख़िर रात में।
सावाल 8: रमजान का चांद देखने पर तरावीह शुरू करना
जवाब: क़यामुल्लैल केवल रमज़ान के चाँद के साथ ही खास नहीं पुरे साल को शामिल है।
चूंकि रमज़ान के महीने में इसका सवाब और महीनो से ज़्यादा हो जाता है,
रमज़ान में क़याम करना पिछले गुनाहो को मिटा देता है,
इसलिए जिस तरह लोग रमज़ान शुरू होते ही दीगर इबादतों में मशग़ूल रहते हैं इसी तरह क़यामुल्लैल में भी मशग़ूल हो जाते हैं।
सवाल 9: ईद के चांद पर तरावीह खत्म करना?
जवाब: यह तीसरे नंबर के सवाल का दूसरा रूप है, लेकिन इतना जान लें कि ईद के चाँद से क़याम का वह इनाम नहीं रह जाता जो कि रमज़ान में था, फिर भी हम सब को रमजान या गैर रमज़ान दोनों में क़यामुल्लैल की एहतमाम करना चाहिए।और अल्हम्दुलिल्लाह उम्मत में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की इस सुन्नत का पूरे साल ख्याल रखते हैं।


Harmen Sharifain me 20 Rakat Taraweeh Kyon...???

Harmen Sharifain me 20 Rakat Taraweeh Kyon...???
👉👉ये सवाल अक्सर पुछा जाता है की जब सुन्नत 11 रकअत है तो फिर हरमैन शरिफैन में 20 रकअत क्यों?
इस सवाल के जवाब के लिए हमे कुछ पीछे जाकर तारीखी पसमंज़र को जानना होगा।
आज से तक़रीबन 100 साल कब्ल तक खाना ए काबा में चार मुसल्ले हुआ करते थे यानी चारों तरफ चार मज़हब हनफी, शाफी, मालिकी, हम्बली के मुसल्ले थे और मुस्लिम इत्तेहाद का जनाज़ा निकला हुआ था, जब शाफी नमाज़ पढ़ते तो बाकी बैठे रहते, जब मालिकी नमाज़ पढ़ते तो बाकी 3 इंतज़ार करते यानी कोई किसी के पीछे नमाज़ अदा नहीं करता था।
आले सऊद की हुकूमत आते ही मुसलमानों के मरकज़ से, इस तकलीफ़ देह सूरते हाल का खातमा किया गया और उसकी मरकज़ीयत बहाल करते हुए 4 मुसल्लों की रस्म को ख़त्म कर दिया, और सिर्फ एक मुसल्लाह जो सिर्फ कुरान व हदीस की तरफ मंसूब था उसे वहां क़ायम कर दिया। तमाम मुसलमानों को एक वक़्त, एक जमात और एक इमाम पर इकट्ठा कर दिया, यूँ पूरी दुनिया ने इस्लाम और मुसलमानों की मरकज़ियत और यकजहती को अपनी आँखों से देखा।
👉रहा यह सवाल की अगर किताब व सुन्नत में क़यामुल्लैल की तादात 11 रकत है और अहले सऊदी अरब भी 11 रकत के क़ायल हैं, तो हरमैन शरीफ़ैन मे 20 रकत नमाज़ ए तरावीह क्यों अदा की जाती है?
👉क्या ये खुला तज़ाद (टकराव) नहीं है?
जब ऐसे तारीक दौर के बाद सबसे पहले रमज़ान में सुन्नत ए नबवी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के मुताबिक 11 रकअत तरावीह पढ़ाई गई, तो 20 रकअत पढ़ने वालों ने शोर मचा दिया। की अगर आप हमें 20 नहीं पढ़ने देंगे तो हमें बाकी 12 रकअत अपने इमाम के पीछे पढ़ने दी जाए। सऊदी हुकूमत ने सोचा अगर इन्हें अपना इमाम खड़ा करने की इजाज़त दे दी जाए, तो फिर हर फिरका यही मुतालबा करेगा और फिर से वही चारो मुसल्ले वापिस बिछ जायेंगे और इत्तेहाद का असल मकसद फ़ौत हों जाएगा।
👉👉लिहाज़ा हुकूमत ने इंतेज़ामी अम्र के पेशे नज़र दो इमामों को मुक़र्र किया और इसका हल ये सोचा गया की एक कारी 10 रकअत पढ़ा कर चला जाए और जिसको मसनून तादाद की अदायगी करनी हो वह भी अपना क़याम इस पहले इमाम के साथ पूरा कर ले 11 रकअत पढ़ने वाले उसके साथ हट कर 1 रकात वित्र पढ़ कर अपनी 11 मुकम्मल कर ले।
इधर दूसरा इमाम 10 रकअत अलग से और पढ़ाये और 20 पढ़ने वाले दोनों इमामो की इक्तेदा में अपनी 20 पूरी कर ले और यूँ इंतेज़ामी नुक्ता ए नज़र से हरमैन मे 20 रकत तरावीह दो इमामों के साथ अदा करने का सिलसिला चल निकला।
इस तरीक़े से क़यामुल्लैल की मसनून तादाद भी एक इमाम पूरी पढ़ाता है और वह वापस जाकर अपनी वित्र अलग पढ़ लेता है। इस तरह सुन्नते नबवी सल्लाहो अलैहे वासल्लम पर भी अमल हो जाता है और टकराव की सूरत पैदा नहीं हो पाती। वरना वहां भी 11 रकाअते ही पढ़ाई जाती है। दूसरे इमाम के आने से तादाद नहीं बढ़ती बल्कि बाहर से आने वाले हाजियो और दीगर लोगो को 2 जमाते होने से सहूलियत हो जाती है। वरना मक्का की दूसरी मस्जिदों में 11 रकअत ही पढ़ी जाती है।
एक बात और है सिर्फ 20 ही का अगर दावा है तो एक चीज़ और भी है की अमीन बिल जहर, फातेहा खुल्फुल इमाम, रफयादैन, तावरुक सब भी होता है । इस पर चुप्पी क्यों? आइए आपको बताते हैं कि कितने अमल ऐसे है जो मक्का मदीना के हैं और उस पर हमारे हनफी भाईयों का अमल नहीं है और वे लोगों को भी ये अमल करने से रोकते हैं
1मक्का मदीना में नमाज़ अव्वल वक़्त अदा की जाती है। आप लोग नहीं करते है।
2मक्का मदीना में नमाज़े मगिरब से पहले दो रकअत नफ्ल नमाज़ अदा की जाती है। आप लोग नही करते हो न करने का टाइम देते हो।
3मक्का मदीना में अज़ान के कलिमात दो-दो बार और तकबीर के कलिमात एक-एक बार कहे जाते है। आपके यहां अज़ान और तकबीर के कलिमात बराबर होते है।
4मक्का मदीना मे सीने पर हाथ बांधा जाता है। आपके यहां नाफ के नीचे बांधते हैं।
5मक्का मदीना में मुक्तदी जहरी नमाज़ों मे भी इमाम के पीछ सूरह फातिहा पढ़ते है। आपके यहां सिर्री नमाज़ो तक में नहीं पढ़ते।
6मक्का मदीना में आमीन बुलन्द आवाज़ से कही जाती है। आप लोग मना करते हो।
7मक्का मदीना में रूकू को जाते और उठते वक़्त और दो रकआत पढ़ कर तीसरी रकआत के लिए उठते वक़्त रफायदैन किया जाता है। आप नहीं करते और करने वाले को रोकते है।
8मक्का मदीना में औरतों को आम मसिजदों में नमाज़ बाजमाअत से अदा करने के लिए आने की इजाज़त है। आपके यहां मना है और जहां आती वहां की आप हंसी उड़ाते है और रोकने की कोशिश करते हैं।
9मक्का मदीना में औरतें र्इद उल फितर व ईद इल अज़हा की नमाज़ जमाअत के साथ अदा करती है। आपके यहां र्इदगाह में नमाज़ के बाद घूमने तो जा सकती है लेकिन साथ में नमाज़ अदा नहीं कर सकती।
🔟मक्का मदीना में र्इदैन की नमाज़ों में बारह ज़ार्इद तकबीरों का एहतमाम होता है। आपके यहां सिर्फ 6 तकबीरे होती है।
👉11) मक्का मदीना में नमाज़े जनाज़ा मसिजद में अदा की जाती है। आपके यहाँ मस्जिद से बाहर|
👉12) मक्का मदीना में नमाज़े जनाज़ा में सूरह फातिहा पढ़ी जाती है। आपके यहां नहीं पढ़ी जाती।
👉13) मक्का मदीना में रोज़े की नीयत ज़बान से नहीं कही जाती। आपके यहां जन्त्री पर लिखी जाती है और कर्इ मस्जिदों से ऐलान होता है पढ़ने के लिए।
👉14) मक्का मदीना में अज़ान से पहले सलात व सलाम नहीं पढ़ा जाता। आपके यहां पढ़ते है।
👉15) मक्का मदीना में नमाज़ पहले ज़बान से नीयत नहीं कही जाती। आप लोग कहते हो और सिखाते हो।
👉16) मक्का मदीना में फर्ज़ नमाज़ों के बाद इज्तेमार्इ दुआ नहीं होती है। आप लोग करते हो।
👉17) मक्का मदीना में नमाज़ र्इद से पहले तकरीर या खुत्बा नहीं होता। आपके यहां होता है।
👉18) मक्का मदीना में नमाज़े जनाज़ा में सना नहीं पढ़ी जाती। आप लोग पढ़ते हो।
👉19) मक्का मदीना में नमाज़े वित्र की आखरी रकआत में किराअत के बाद रफायदैन नहीं किया जाता। आप लोग करते हो।
👉20) मक्का मदीना में वित्र को ताक़ अदद में अदा किया जाता है जैसे 3, 5, 7, । आपके यहां 3 के अलावा तादाद वित्र में जायज़ नहीं।
अगर बीस रकअत तरावीह पर मक्का मदीना का अमल अहनाफ के यहां दलील है। तो मक्का मदीना के बाकी अमलों को भी क़ुबूल करना चाहिए। इसे सिर्फ बीस रकत तरावीह तक ही क्यों महदूद कर दिया गया? बाकी मसअलों में उसको दलील क्यों नहीं बनाया जाता? कहीं यह बाज़ पर र्इमान लाना और बाज़ का इनकार वाला मामला तो नहीं। और अगर अहनाफ उसको अहले हदीस पर दलील बनाकर पेश करते हैं तो उनको यह जान लेना चाहिए कि अहले हदीस के यहां भी दलार्इल सिर्फ वही है जो सलफ सालेहीन के यहां दलील थे
अल्लाह दिलों की तंगी दूर करे और हिदायत दे । आमीन ।


याकूब मेमन की फांसी

याकूब मेमन की फांसी
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🔲मकबोल अहमद सल्फ़ी
भारत में मुंबई बम धमाकों में वित्तीय सहायता प्रदान करने के जुर्म में मृत्युदंड पाने वाले दोषी याकूब मेमन को बड़े गुरुवार भारतीय राज्य महारशटर शहर नागपुर जेल में फांसी दे दी गई। (बीबीसी उर्दू समाचार)

🔲ीिकोब मेमन की फांसी से जुड़े कई सवाल पैदा होते हैं।
🔴सब से पहलासवाल यह है कि इस मामले में जल्दबाजी क्यों काम लिया गया?
🔴मम्बई बम विस्फोट के वास्तविक अपराधी याकूब मेमन नहीं, उनके बड़े भाई टाइगर मेमन हैं, तो उसे सजा क्यों?
🔴ास मामले में 11 अपरमान को फांसी की सजा सुनाई गई थी सुप्रीम कोर्ट ने 10 लोगों की सजा को उम्र कैद में तब्दील कर दी सजा केवल मेमन को ही क्यों?
🔴मीमन पत्नी दशक लगाई कि जब हमारे पति ने बीस साल की जेल वाली सजा काट ली है तो उसे फांसी क्यों? अगर फांसी उसकी सजा थी तो 20 साल जेल क्यों? जवाब में कहा करते हैं कि इसका कारण हमारा मुसलमान होना है।

👆ान प्रश्न अलावा याकूब मेमन की फांसी की पृष्ठभूमि में हम इस्लामी दृष्टिकोण से दो महत्वपूर्ण बातों की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।

1जू लोग इस्लाम की मौत (रजम) को सनदगी कल्पना करते थे, आज फांसी से उनकी भाषा तो फिर भी बंद हो गई। स्तुति

2फांसी की सजा पाने वालों को अगर देखें तो वह अपने अंतिम दिनों में काफी बदल जाते हैं, अगर मुसलमान हों तो पूजा, माफी और प्रार्थना आदि में लग जाते हैं और एक खास बात है कि लोगों से मेल जोल काफी नरमी का व्यवहार पैदा कर लेते हैं ।
यह सब इसलिए कि उन्हें अपनी मौत का दिन इतिहास पता है जबकि देखा जाए तो हमारी भी मौत तय है, दिन और ऐतिहासिक का अल्लाह के सिवा किसी को पता नहीं लेकिन एक न एक दिन जाना सभी को है।

अगर हम फांसी पाने वाले मुजरिम की तरह इस तथ्य को जान लें कि हमारी मौत का दिन भी तय हो चुका है तो हमारे अंदर भी उन्हीं की तरह इस जगत नापाईदार से जाने की भावना पैदा होगी और इस संदर्भ में जीवन और भविष्य की कामरानी उपकरण प्रदान करेंगे।

ए परवरदिगार आलम! हमारे भीतर ऐसा माना भविष्य पैदा हो जाए। आमीन
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अहले हदीस में मुख़्तलिफ़ जमातें कौन हक़ पर?

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मकबूल अहमद सलफी

लोगों के ज़हन व दिमाग़ में आज कल यह शुबह डाला जाता है कि अहले हदीस में भी मुख़्तलिफ़ जमातें हैं,इसलिए यहाँ सवाल पैदा होता है कि अहले हदीस की कौन सी जमात हक़ पर है ?
इस बात को समझने के लिए पहले यह जानना होगा कि अहले हदीस किसे कहते हैं और इनकी क्या पहचान है ?
अहले हदीस क़ुरआन व हदीस पे अमल करने वाले को कहते हैं यानी अस्लाफ़ की फ़हम को सामने रखते हुए क़ुरआन व हदीस की रोशनी में दीने मुहम्मदी की हक़ीक़ी शक्ल पेश करते हैंइसमें शख़्सियत परस्ती या ज़ातियात का कोई दख़ल नहीं जो क़ुरआन व हदीस से साबित हो उसे मान लेने वाला अहलुल हदीस़ है चाहे वह किसी रोज़गार से जड़ा होकिसी दीनी नश्रियाती इदारे जड़ा हो या किसी जमाअती तंज़ीम से वाबस्ता हो। अस्ल चीज़ है उसका मन्हज।

इसीलिए अहले हदीस को मुख़्तलिफ़ नामों से जाना जाता है मसलन सलफ़ीमुहम्मदीअहलुस् सुन्नहअसरी और ताइफ़े मंसूरह वग़ैरा ।
अहले हदीस जमात क़ुरआन व हदीस की रोशनी में दीने मुहम्मदी की सच्ची तस्वीर अव्वाम के सामने पेश करने के लिए मुख़्तलिफ़ महाज़ पे दीनी काम करती है।
दीने मुहम्मदी की सच्ची तस्वीर पेश करने का सब से मज़बूत ज़रिया मदारिस हैं जहां से उलमा व फ़ुज़ला निकल कर फिर नए नए ज़राए से दीने मुहम्मदी की अस्ल सूरत पेश करते हैं ।
जमाअती तंज़ीमें जो मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में मुख़्तलिफ़ नामों से बनाई जाती हैंयही अहले मदारिस इन तन्ज़ीमों के ज़रिया अव्वामुन् नास को तरह तरह के वसाइल अपना कर दीने मुहम्मदी से रूशनास कराते हैं । यह तंज़ीमें जिस क़द्र फैली होंगी उसी क़द्र दीन की नश्र व इशाअत भी होगी ।
लिहाज़ा जमात की मुख़्तलिफ़ तन्ज़ीमों से अहले हदीस की फ़आलिय्यत और इनकी सरगर्मियों का पता चलता है । हिन्दुस्तान में जमइय्यत अहले हदीस के नाम से जमाअती तंज़ीम चलती हैपूरे हिन्दुस्तान में इसका जाल बिछा है । इसका मतलब यह हुवा कि अहले हदीस जमात हिन्दुस्तान की पूरी अव्वाम को सहीह दीन से रूशनास करा रही हैतभी तो आज दिन ब-दिन अव्वाम इस जमात की तरफ़ तवज्जह बढ़ाती जा रही है । इस जमइय्यत के अलावा अहले हदीस की कुछ दूसरी जमइय्यत और तंज़ीम भी हैंइनका भी मिशन और मन्हज वही है जो मरकज़ी जमइय्यत अहले हदीस हिन्द का हैतो इसमें कोई हर्ज नहीं । जैसे कहा जाता है जितने मदरसे होंगे उतनी तालीम बढ़ेगी वैसे ही जितनी मज़्हबी तंज़ीम होगी अव्वाम उतना फ़ाएदा उठाएगी ।
यहाँ एक बात वाज़ेह रहे कि अगर कोई मज़्हबी तंज़ीम क़ुरआन व हदीस की राह से हटी हुई है या वह क़ुरआन व हदीस के नाम पे तक़लीद परस्ती या शख़्सियत परस्ती फैलाती है या फिर क़ुरआन व हदीस की तालीम सलफ़े सॉलेहीन की फ़हम की रोशनी में नहीं पेश करती तो वह अहले हदीससलफ़ीमुहम्मदीअहल अस-सुन्नाअसरी और ताइफ़े मंसूरह से हटी हुई तंज़ीम है।
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अब हिंदी में दीनी किताबोंया दीनी मेसेजेस का बनाना होगा बहुत आसानसूबाई जमइय्यत अहले हदीस महाराष्ट्र की जानिब से बहुत जल्द एक उर्दू से हिंदी में यूनिकोड कनवर्टर लांच हो रहा है.
यह मज़मून इसी कनवर्टर से हिंदी में कन्वर्ट किया गया है.