بدھ، 27 اپریل، 2016

अज़ान का जवाब और इसके बाद की दुआ

अज़ान का जवाब और इसके बाद की दुआ
٭ सब से पहले तो मुअज़्ज़िन की अज़ान का जवाब दे और अज़ान का जवाब वैसे ही देना है जैसे मुअज़्ज़िन कहता है इसकी दलील मनदर्जा ज़ेल रिवायत है:
(إذا سمعتم المؤذن فقولوا مثل ما يقول، ثم صلوا علي فإنه من صلى علي واحدة صلى الله عليه بها عشرا، ثم سلوا الله لي الوسيلة فإنها منـزلة في الجنة لا تنبغي إلا لعبد من عباد الله وأرجو أن أكون أنا هو، فمن سأل لي الوسيلة حلت له الشفاعة)
अब्दुल्लाह बिन अ़म्र बिन अल-आस रज़ियल्लाहू अन्हुमा फ़रमाते हैं कि मैंने नबी करीम को यह कहते हुए सुना:जब तुम मुअज़्ज़िन (की आवाज़) सुनो तो बिल्कुल ऐसा ही कहो जैसा मुअज़्ज़िन कहता है, फिर मुझ पर दरूद भेजो,जो शख़्स मुझ पर एक बार दरूद पढ़ता है, इस पर अल्लाह तआला अपनी दस रहमतें नाज़िल फ़रमाता है और इसके बाद अल्लाह तआला से मेरे लिए वसीले का सवाल करो क्योंकि यह जन्नत में एक मक़ाम है जिस पर अल्लाह का एक बन्दा फ़ाइज़ होगा, और मैं उम्मीद करता हूं कि वह में हों, तो जिसने मेरे लिए वसीला तलब किया इसके लिए मेरी शिफ़ाअत हलाल हो गई। (रवाह मुस्लिम)
एक दूसरी रिवायत है ।
عَنْ جَابِرِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا: أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: " مَنْ قَالَ حِينَ يَسْمَعُ النِّدَاءَ:اللَّهُمَّ رَبَّ هَذِهِ الدَّعْوَةِ التَّامَّةِ، وَالصَّلاَةِ القَائِمَةِ، آتِ مُحَمَّدًا الوَسِيلَةَ وَالفَضِيلَةَ، وَابْعَثْهُ مَقَامًا مَحْمُودًا الَّذِي وَعَدْتَهُ،  حَلَّتْ لَهُ شَفَاعَتِي يَوْمَ القِيَامَةِ
जो शख़्स अज़ान सुनने के बाद यह दुआ पढ़े:
اللَّهُمَّ رَبَّ هَذِهِ الدَّعْوَةِ التَّامَّةِ، وَالصَّلاَةِ القَائِمَةِ، آتِ مُحَمَّدًا الوَسِيلَةَ وَالفَضِيلَةَ، وَابْعَثْهُ مَقَامًا مَحْمُودًا الَّذِي وَعَدْتَهُ
(ऐ अल्लाह!यह दावत ताम्मा और क़ायम शुदा नमाज़ है, तो हज़रत मुहम्मद को वसीला और फ़ज़ीलत अता फ़रमा, और इन्हें मक़ामे महमूद पर फ़ाइज़ फ़रमा, जिसका तूने इन से वादा फ़रमाया है) तो क़ियामत के दिन इसके लिए मेरी शिफ़ाअत हलाल हो जाएगी।  (बुख़ारी)
* अशहदु अल् ला इलाह इल्लल्लाह, अशहदु अन्न् मुहम्मदर रसूलुल्लाह पे पहले इसी तरह जवाब दे फिर यह कलिमा कहे:" रज़ीतु बिल्लाहि रब्ब व बिल इस्लाम देना, व बि मुहम्मद रसूला" क्योंकि सहीह हदीस में हज़रत सअ्द बिन वक़्क़ास रज़ियल्लाहू अन्हु से मरवी है कि ने फ़रमाया:
من قال حين يجيب المؤذن عند الشهادة رضيت بالله ربا، وبالإسلام دينا، وبمحمد رسولا، غفر له ذنبه
तर्जुमा:मुअज़्ज़िन जब अशहद अन ला इलह इल्लल्-लाह, अशहद अन महमदअ न रसूलुल्लाह कहे और जो इसके जवाब में कहे रज़ीतु बिल्लाहि रब्ब व बिल इस्लाम देना, व बि मुहम्मद रसूला तो इसके गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।

* हैय्य अलस-सलाह और हैय्य अलल् फ़लाह का जवाब "ला हौ ल व ला क़ुव्वत  इल्ला बिल्लाह" देना है ।

* अस-सलातु ख़ैरुम् मिनन् नौम का जवाब अस-सलातु ख़ैरुम् मिनन् नौम ही दिया जाएगा क्योंकि इसका अलग से जवाब वारिद नहीं है,बअ्ज़ लोग कहते हैं कि इसका जवाब सद्क़त व बर-रत है। लेकिन यह कहना दुरुस्त नहीं है क्योंकि यह कलिमा जिस हदीस में मज़्कूर है वह ज़ईफ़ है ।

* अज़ान का जवाब देने के बाद दरूद शरीफ़ पढ़े:
اللهم صلي على محمد وعلى آل محمد كما صليت على آل إبراهيم إنك حميد مجيد، اللهم بارك على محمد وعلى آل محمد، كما باركت على إبراهيم وعلى آل إبراهيم إنك حميد مجيد.

* फ़िर यह दुआ पढ़े:
اللهم رب هذه الدعوة التامة, والصلاة القائمة آت محمداً الوسيلة والفضيلة وابعثه مقاماً محموداً الذي وعدته(بخاری)
(बुख़ारी)


मक़बूल अहमद सलफ़ी

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