جمعرات، 28 اپریل، 2016

हज से मुतल्लिक सवाल

आप के चंद सवालात और इनके जवाबात
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुहु
कुछ सवाल हैं शेख़ साहिब बराहे करम जवाब मत्लूब है।
साइल:शहज़ाद रज़ा पाकिस्तान

अल-हम्दू लिल्लाह
(1) सवाल:हज व उमरा पर जाते हुए लोगों को पैसे देना कि कबूतर चूक पर जो कबूतर हैं इनको दाना डाल देना ।
जवाब:लोगों ने हरम शरीफ़ के कबूतरों को अपने मन से फ़ज़ीलत दीद इ है,इस वजह से इनका बड़ा ख़याल किया जाता है और इन्हें दाना डाला जाता है। वाज़ेह रहे मक्का और मदीना के कबूतरों की कोई अफ़्ज़लियत नहीं है,और ना ही इनको दाना डालने का इहतिमाम किया जाएगा। अल्लाह तआला जैसे सारी का मख़्लूक़ का राज़िक़ है इन कबूतरों का भी है।ऐसा करने वालों की अक्सरयत पाकिस्तानी अव्वाम की है क्योंकि वह अपने मुल्कों में भी ऐसा करते हैं।इनका देखा देखी दुसरे लोग भी ऐसा करने लगे।जब ख़ुद दाना नहीं डाल सकते तो फिर दूसरों की तरफ़ से बदर्जे ऊला नहीं डाला जाएगा।इस काम से परहेज़ किया जाए।
(2) सवाल:अपनी तस्बीह ज़ाइरीन को देना कि ख़ाना काबा को छू कर लाए ।
जवाब:अव्वलन तस्बीह हाथ पे गिनना चाहिए जैसा कि रसूलुल्लाह की सुन्नत है। सानियन तस्बीह को काबा से छू कर लाना बिदअत है।तवाफ़ करते हुए या बग़ैर तवाफ़ के काबा का कोई भी हिस्सा बरकत की निय्यत से नहीं छुवा जाएगा।हजरे अस्वद और रुक्न यमानी छूने का हुक्म है मगर यह भी सिर्फ़ अल्लाह के हुक्म की बजा आवरी है ना कि हुसूल बरकत की निय्यत से।अगर काबा का कोई हिस्सा (हजरे अस्वद और रुक्न यमानी के अलावा) बरकत की निय्यत से छूता है या कोई सामान तस्बीह वग़ैरा छुआता है तो वह बिदअत का इर्तिकाब करता है ।

(3) सवाल:नबी करीम के रौज़ा पर मेरा सलाम कहना:
जवाब:ऐसा काम ग़ैर मस्नून और ग़ैर मशरूअ् है।इसका सबूत क़ुरआन व हदीस में कहीं नहीं मिलता।सलाम तो ऐसी चीज़ है कि कोई कहीं से भी नबी को सलाम कर सकता है और हम कम अज़ कम पाँच बार नबी को दरूद व सलाम भेजते ही हैं फिर दूसरों के हाथों भेजने की क्या ज़रूरत ?
शायद ऐसे लोगों को नबी पाक के फ़रमान पे यक़ीन नहीं है:
   لا تجعلوا بیوتکم قبوراً ، ولا تجعلوا قبری عیداً ، وصلُّوا علیَّ فإن صلاتکم تبلغنی حیث کنتم
तर्जुमा:तुम अपने घरों को क़ब्रें मत बनाओ और मेरी क़ब्र को मेला गाह ना बनाओ, और मुझ पर दरूद भेजा करो क्योंकि तुम जहां भी हो तुम्हारा दरूद मुझ तक पहुंच जाता है। (अबू दावूद:20 42)
٭ इस हदीस को शेख़ अल्बानी रहिमहुल्लाह ने सहीह क़रार दिया है।(सहीह अल् जामेअ्:7 2 26 )
क़ब्र पे जा के सलाम पेश करने के मुताल्लिक़ एक रिवायत पेश की जाती है:
"जो इन्सान मेरी क़ब्र के पास खड़ा होकर मुझ पर दरूद व सलाम पढ़ता है इसे में ख़ुद सुनता हूं और जो मेरी क़ब्र से दूर रह कर दरूद पढ़ता है वह मुझे पहुंचाया जाता है।"
٭ मुहद्दिसीन के फ़ैसले के मुताबिक़ यह हदीस ख़ुद साख़्ता और मौज़ू है। (सिलसिला अल-अहादीस अल-मौज़ूअह नंबर 203)

(4) सवाल:नबी करीम को दरूद का हदिया पेश करना कि फ़ुलां इब्न फ़ुलां ने आप के लिए इतने दरूद तोफ़ह किए हैं।
जवाब:अव्वलन मुअय्यन तादाद की सूरत में दरूद व सलाम पढ़ना जिसका सबूत नहीं है लग़्व काम है,और फिर मुअय्यन तादाद की सूरत में किसी के हाथों दरूद भेजने का भी वही हुक्म है जो अभी सलाम के मुताल्लिक़ गुज़रा है ।

(5) ख़ास तौर पर वहां जा कर कबूतरों का झूठा दाना उठाना कि यह बे औलाद लोगों के लिए औलाद का सबब बनेगा ।
जवाब:कबूतरों को दाना डालना ही नहीं चाहिए,आख़िर लोग ऐसा क्यूं करते हैं?दुनिया में हज़ारों मख़्लूक़ है मगर सिर्फ़ कबूतर को दाना डालने की क्या हिकमत है?यह जिहालत के सिवा कुछ नहीं है।मज़ीद बरआं इन कबूतरों का झूठा चुनना हुसूल औलाद का सबब तसव्वुर करना ज़ईफ़ अल-एतक़ादी है, बल्कि इसमें शिर्क की आमेज़िश है। इस काम से फ़ौरन तौबा करना चाहिए ।

( 6 ) सवाल:मदीना जा कर ख़ाक शिफ़ा या आब शिफ़ा के हुसूल की कोशिश करने की शरई हैसियत भी बयान कर दें ।
जवाब:मदीने में किसी जगह ऐसी ना कोई मिट्टी है और ना ही ऐसा पानी है जिसे शरीअत में शिफ़ा क़रार दिया गया।बदर में एक कुंवां है जिसे लोगों ने बिअर शिफ़ा के नाम से मश्हूर कर रखा है हालांकि यह बिअर अर-रूह अ ء है,और इस बिअर की कोई ख़ुसूसियत नहीं साबित है।लिहाज़ा ख़्वाह म-ख़्वाह ऐसी चीज़ों में अपना ईमान ना ज़ाए करें जिसका कोई सबूत नहीं हो। अल्लाह तआला ने ज़मज़म को शर्फ़ व फ़ज़ीलत दी है, इसे ज़्यादा से ज़्यादा इस्तिमाल करें ।
कुतुब ह
मक़बूल अहमद सलफ़ी

 दफ़्तर तआवुनी बराए दावत व इरशाद शुमाल ताइफ़ ( मस्स रह ) सऊदी अरब-

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