جمعرات، 28 اپریل، 2016

अज़ान के वक़्त बात करना

अज़ान के वक़्त बात करना
मोहतरम जनाब मक़बूल अहमद साहिब अस्सलामु अलैकुम गुज़ारिश है कि आपकी वेबसाईट ब्लॉग से हासिल शुदा तस्वीर आप को इरसाल कर रहा हूं,आप से गुज़ारिश है कि क़ुरआन व अहादीस़ के वाज़ेह हवाला जात की रोशनी में दौराने अज़ान बात चीत,दर्स व तदरीस की इजाज़त के मस्अले के बारे में इज़हार ख़याल फ़रमाएं ।
सवाल:क्या दौराने अज़ान तालीम व तदरीस का अमल जारी रखा जा सकता है?अगर हाँ आयत क़ुरआन या हदीस या सहाबा के अमल के बारे में सहीह इस्नाद से मालूमात दें ताकि मुआमले को बेहतर तौर पर समझा जा सके।
आपकी राहनुमाई का मुन्तज़िर
के-मुश्ताक़ अहमद इस्लामाबाद
अल-जवाब बि-औनिल्लाहिल् वह्हाब
इसमें कोई शक नहीं कि अफ़्ज़ल यही है कि अज़ान के वक़्त ख़ामोशी इख़्तियार की जाए और बग़ौर अज़ान सुनी जाए और इसका जवाब दिया जाए। मगर अक़ली और नक़ली दलाइल से पता चलता है कि ज़रूरतन अज़ान के दौरान बात करना जाएज़ है।मसलन दर्स व तदरीस हो, किसी को ज़रूरतन मुख़ातिब करना हो या कोई काम सौपना हो या फिर कोई काम ही क्यूं ना हो वग़ैरा ।
दलाइल मुलाहिज़ा हों।
(1) अव्वलन बात करना एक जाएज़ अमल है इस की मुमानिअत कहाँ कहाँ है इस्लाम ने वज़ाहत कर दी है,अज़ान वह मक़ाम नहीं जहां इस्लाम ने बात करने से मना किया हो।

(2) सानियन अज़ान के वक़्त बात करने की सरीह दलील मिलती है,चुनांचे इमाम बुख़ारी रहिमहुल्लाह ने बाब बांधा है:" बाबुल् कलाम फ़ी अल अज़ान"यानी बाब:अज़ान के दौरान बात करने के बयान में
और इस बात के तहत मनदर्जा ज़ेल नुसूस ज़िक्र करते हैं।
وتكلم سليمان بن صرد في أذانه. وقال الحسن لا بأس أن يضحك وهو يؤذن أو يقيم
तर्जुमा:और सुलैमान बिन सरद सहाबी ने अज़ान के दौरान बात की और हज़रत हसन बसरी ने कहा कि अगर एक शख़्स अज़ान या तकबीर कहते हुए हंस दे तो कोई हर्ज नहीं।
حدثنا مسدد، قال حدثنا حماد، عن أيوب، وعبد الحميد، صاحب الزيادي وعاصم الأحول عن عبد الله بن الحارث قال خطبنا ابن عباس في يوم ردغ، فلما بلغ المؤذن حى على الصلاة. فأمره أن ينادي الصلاة في الرحال. فنظر القوم بعضهم إلى بعض فقال فعل هذا من هو خير منه وإنها عزمة.
तर्जुमा:हमसे मुसद्दद बिन मुसरहद ने बयान किया, कहा कि हमसे हम्माद बिन ज़ैद ने अय्यूब सख़्तियानी और अब्दुल् हमीद बिन दीनार साहिब अज़-ज़ियादी और आसिम अहवल से बयान किया, इन्होंने अब्दुल्लाह बिन हारिस बसरी से, इन्होंने कहा कि इब्न अब्बास रज़ियल्लाहू अन्हुमा ने एक दिन हमको जुमा का ख़ुत्बा दिया। बारिश की वजह से इस दिन अच्छी ख़ासी कीचड़ हो रही थी। मुअज़्ज़िन जब हैय्यालस् सलाह पर पहुंचा तो आप ने इससे अस-सलात फ़ी अलरहअल कहने के लिए फ़रमाया कि लोग नमाज़ अपनी क़ियाम गाहों पर पढ़ लें। इस पर लोग एक दुसरे को देखने लगे। इब्न अब्बास रज़ियल्लाहू अन्हुमा ने कहा कि इसी तरह मुझ से जो अफ़्ज़ल थे, इन्होंने भी किया था और इसमें शक नहीं कि जुमा वाजिब है।
पहले नस्स में दौराने अज़ान हंसने का ज़िक्र है,यह भी एक अमल है,इत्तिफ़ाक़न अगर कोई दौराने अज़ान हंस दे तो कोई हर्ज नहीं। इसी तरह दुसरे नस्स में दौराने अज़ान हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहू अन्हुमा से बा-क़ाइदा कलाम साबित है।मालूम हुवा कि ऐसे ख़ास मौक़े पर दौराने अज़ान कलाम करना दुरुस्त है।
(3) स़ालिस़न अज़ान होते वक़्त इसका जवाब ज़बान हाल से देना है,और कलाम का ताल्लुक़ ज़बान क़ाल से है।एक आदमी बात करते हुए भी अज़ान का जवाब दे सकता है ।
(4) अहले इल्म से दौराने अज़ान कलाम करना भी मन्क़ूल है,और इस पे जय्यिद उलमा के फ़तावे भी हैं।
शेख़ इब्न बाज़ रहिमहुल्लाह लिखते हैं:अज़ान के दौरान और इसके बाद कलाम करना जाएज़ है,इसमें कोई हर्ज नहीं है लेकिन मुअज़्ज़िन और इसका जवाब देने के लिए सुन्नत यह है कि ख़ामोशी इख़्तियार की जाए। (कलाम का जुज़)
(5) लोगों में अज़ान के दौरान बात करने का ख़ौफ़ झूठी रिवायात मुन्तशिर होने की वजह से है।जैसा कि लोगों में मश्हूर है:" अज़ान के वक़्त बात करने मौत के वक़्त कलिमा नसीब नहीं होता"। यह झूठी बात है,इसकी कोई अस्ल नहीं है ।
इसी तरह यह भी मश्हूर है कि:" अज़ान के वक़्त बात करने वाले पे फ़रिश्तों की लानत होती है"। यह भी झूठी और घड़ी हुई बात है।इसलिए इन बातों को नबी की तरफ़ क़तई मंसूब ना करें।

ख़ुलासा कलाम ज़रूरत के तहत दौराने अज़ान बात कर सक्ते हैं मगर याद रहे इसका हरगिज़ मतलब यह नहीं है कि अज़ान होते वक़्त फ़ुज़ूल बातें की जाएं।कितने ताज्जुब की बात है लोग अज़ान के वक़्त बात करने से डरते हैं मगर इस वक़्त बुराई करने से नहीं डरते,या अज़ान की पुकार पे मस्जिद को नहीं जाते जो कि फ़रीज़ा है ।

आप का भाई
मक़बूल अहमद सलफ़ी

 दफ़्तर तआवुनी बराए दावत व इरशाद शुमाल ताइफ़ ( मस्स रह ) सऊदी अरब

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