جمعرات، 28 اپریل، 2016

मुहम्मदी क़ायदा : एक नज़र तक़रीज़:

मुहम्मदी क़ायदा : एक नज़र तक़रीज़:
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मक़बूल अहमद सलफ़ी / दाई दफ़्तरतआवुनी बराए दावत व इरशाद ताइफ़सऊदी अरब

क़ुरआने करीमआख़िरी आस्मानी किताब हैयह गंजीनह उलूम व फ़ुनून है। यही वजह है कि जहां इसे मुसलमान पढ़ते हैं वहीं ग़ैरों ने भी इसे पढ़ कर ख़ूब ख़ूब फ़ाएदा उठा या।क़ुरआन के मुताद्दिद एजाज़ हैंइनमें से एक यह भी है कि जैसे अल्लाह तआला ने इस किताब को आसान बनाया है वैसे ही इसका पढ़ना और हिफ़्ज़ करना भी आसान बिना दिया है। ज़माना क़दीम से यह रिवायत चली आ रही है कि तिफ़्ल मक्तब महज़ एक क़ायदा की तालीम हासिल करता है और बराहे रास्त क़ुरआने करीम अपने हाथों में ले लेता हैगोया क़ुरआन पढ़ना क़ुरआनी क़ाएदे पर मुनहसिर है। क़ायदा जिस क़द्र आसान और मुमताज़ होगा इतनी ही जल्दी बच्चे के हाथ में क़ुरआन होगा।इस वक़्त क़ाईदों की बहुतात है मगर" मुहम्मदी क़ायदा " में जो ख़ूबियां हैं वह सब से अलग और सब से निराली हैं।

इसकी चंद अनोखी ख़ूबियां मनदर्जा ज़ेल हैं।

यह क़ायदा मुसन्निफ़ के कई साला तदरीसी तजरुबात का निचोड़ है।

इस क़ाएदे के तीस अस्बाक़ इस क़द्र सहल हैं कि बच्चों को याद करने में कोई दुशवारी नहीं होगी।

मुताद्दिद किताबों से इस्तिफ़ादाकरके मुसन्निफ़ ने क़िरअत व तजवीद के क़वाइद इख़्तिसार के साथसलीस अंदाज़ में पेश किया है।

इस किताब के पढ़ाने का भी एक थेओरी है जिसे समझ लेने के बाद निहायत क़लील मुद्दत में बच्चा यह क़ायदा ख़त्म कर सकता है।

यह क़ायदा ख़त्म होते ही बच्चा अरबी व उर्दू ज़बान के साथ क़िरअत व तजवीद का भी जानकार होगा बशर्तेकि मुदर्रिस ने मुसन्निफ़ के बताए हुए उसूल  नज़रियात को बरता हो।

मश्क़ व इम्तिहानी सवालात का इहतिमाम भी इस क़ाएदे को दीगर क़वाइद से मुमताज़ करता है।

इतनी जल्दी इस क़ाएदे के बीस से ज़ाइद एडीशन शाए हो जाना अव्वाम में तल्क़ी बिलक़बूल की वाज़ेह दलील है।

तरक़्क़ियाती दौर में इस मुनफ़रिद क़ाएदे की सी डी भी तयार कर ली गई हैबच्चों को किताबी क़ाएदे के साथ अगर सी डी से भी मश्क़ कराई जाए तो सोने पे सुहागा हो जाएगा।

मुहम्मदी क़ाएदे का "अल-मिस्बाह"सॉफ़्टवेयर भी बेहद मुफ़ीद है।

इस क़ाएदे की तसनीफ़ व तालीफ़ में मदरसा मुहम्मदिया के नाज़िम क़ारी अबू मुआज़ अश्फ़ाक़ अहमद मुहम्मदी ने बड़ी इर्क़ रेज़ी से काम लिया है जिसके लिए मैं दिल की गहराइयों से इन्हें मुबारक बाद देता हूं। यह काम जमात के लिए एक सरमाया की हैसियत रखता है। अहले मदारिसमुदर्रिसीन और क़ुर्रा हज़रात से अपील करता हूं कि अपने अपने मदरसों और मक्तबों में इस क़ायदा को निसाब में दाख़िल करें जो इस वक़्त मेरी नज़र में सब से उम्दा क़ायदा है। आख़िर में अल्लाह तआला से दुआ करता हूं कि इस किताब को उम्मत के लिए नफ़ा बख़्श बनाएमुसन्निफ़ क़ायदा मुहम्मदी बिरादरम अबू मुआज़ मुहम्मदी के लिए सदक़ा जारिया बनाए और इस क़ाएदे की तरतीब  तज़ईनकिताबतव तबाअ़त और नश्र व इशाअत में मुआविन सबको अज्रे जज़ील से नवाज़े। और मुसन्निफ़ को मज़ीद इस तरह से जमइय्यत व जमात के काज़ में इज़ाफ़े की तौफ़ीक़ बख़्शे। आमीन

  सल्लल्लाहु अला नबिय्यिना मुहम्मद  आलिहि व सल्लम


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