तरावीह के ताल्लुक़ से चंद सवालात
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Written
by: मक़बूल अहमद
सल्फ़ी
सवाल नंबर 1: आठ रकअत तरावीह ?
जवाब: तरावीह आठ रकअत से अधिक रसूलﷺ सेसाबित नहीं।
दलील
(मुस्लिम व सही बुखारी: जिल्द1,हदीस संख्या 1887)
अबोसलमह बिन अब्दुर्रहमान से रिवायत करते हैं
कि वह (अबोसलमह) हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से पूछा रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु
अलैहि वसल्लम की रात की नमाज़ रमज़ान में कैसी थी। उन्होंने कहा कि रमज़ान में और
रमज़ान के अलावा ग्यारह रकतो से अधिक न पढ़ते थे। चार रकअतें पढ़ते थे। उनके आयाम
हसन को न पूछो। फिर चार रकतेें पढ़ते जिनके आयाम हसन का क्या कहना। फिर तीन रकितें
पढ़ते थे।
सवाल नंबर 2: तरावीह बाजामाअत?
जवाब: नबी से तरावीह की नमाज़ बाजमाअत पढ़ना
कई सही हदीसों से साबित है,
बराए नमूना एक हदीस:
हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूल
अल्लाह (स.अ.व.) ने हम लोगों को रमजान के महीने में (तरावीह) आठ रकअत नमाज़ पढ़ाई
के बाद में वित्र पढ़ा दूसरे दिन जब रात हुई तो हम लोग फिर मस्जिद में इकट्ठा हुए
उम्मीद है कि आप निकलेंगे और हमे नमाज़ पढ़ाएँ करेंगे लेकिन आप न निकले हम सुबह तक
मस्जिद में रह गए तो हम लोग रसूल अल्लाह (स.अ.व.) की ख़िदमत में हाज़िर हुए और यह
बात बताई तो रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने कहा कि मुझे खतरा हुआ कि कहीं यह नमाज़ तुम
लोगों पर फ़र्ज़ न हो जाये (इसलिए मैं घर से नहीं निकला)
() (ابنِ حبان ،ابنِ خزیمہ،طبرانی فی الصغیر،محمد بن نصر مروزی فی
قیام اللیل ص ۹۰)
सवाल नंबर 3: पूरे महीने तरावीह पढ़ना ?
जवाब: नबी ﷺने खुद तो यह नमाज़ हमेशा पढ़ी जैसा हज़रत
आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस से साफ़ है, लेकिन रमज़ान में तीन दिन, साथियों को भी जमाअत के साथ पढ़ाई।
इस पर यह सवाल कि फ़िर हम महीने भर क्यों
पढ़ते हैं? '' तो इसका जवाब यह है कि आप की इच्छा बहरहाल महीने भर यह नमाज़ पढ़ाने की थी।
इसके बावजूद यदि आप तीन दिन से अधिक नहीं पढ़ाई, तो इसकी वजह
भी आप खुद ही बयान फ़रमा दी:
(صحیح بخاری، کتاب الصوم، باب فضل من قام رمضان)
कि '' (अल्लाह तआला के यहां यह अमल बेहद पसंदीदा
होने आधार पर) में डरता हूँ कि कहीं यह तुम परफरज़ न हो और तम (इस की अदायगी) से
आजिज़ रह जाओ। ''
इसका साफ़ मतलब है कि अगर यह फ़र्ज़ हो जाने का
डर आप को न होता तो आप महीने भर यह नमाज़ पढ़ाते. लिहाज़ा जब यह वजह ज़ाइल हो गई, तो उसके बाद आप की इच्छा के आधार पर महीने भर ये नमाज़ बा जमाअत अदा करना
सुन्नत है।
सवाल नंबर 4: हर मस्जिद में तरावीह पढ़ना?
जावाब: जब तरावीह पढ़ने का सबूत मिलता है और
पूरे महीने पढ़ने की मशरूयत साबित है और तरावीह की मक़ाम ओ फ़ज़ीलत भी अपनी जगह
मुस्लिम है तो हर जगह पढ़ी जाएगी। जहां लोग नमाज़ अदा करते हैं वहाँ तरावीह की
नमाज़ जमात से पूरे रमजान पढ़ सकते हैं।
सवाल नंबर 5: तरावीह में खत्म कुरान ?
जवाब: तरावीह में पूरा कुरान खत्म करना जरूरी
नहीं है, और न ही हमारे किसी आलिमे दीन ने क़ुरान करीम को खत्म करना वाजिब क़रार दिया है
लेकिन हाफिज कुरान हो तो पूरा कुरान खत्म करना बेहतर है।
सवाल नंबर 6: तरावीह दो रकअत करके पढ़ना?
उत्तर: इब्न उमर रज़ियल्लाहु िनहमा बताते हैं
कि एक व्यक्ति ने रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रात की नमाज के विषय में
पूछा तो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: "रात की नमाज़ दो दो रकअत
है और अगर तुम्हें महसूस हो कि फजर होने को है तो एक रकअत वितर अदा कर ले।
"(सही बुखारी : 946 सही मुस्लिम : 749)।
सवाल 7: ईशा की नमाज़ के बाद तरावीह पढ़ना ?
जवाब: इसमें किसी का इख़्तेलाफ नहीं कि
तहज्जुद का वक़्त ईशा के बाद से लेकर सुबह तक है और हम लोग उसी समय के अंदर तरावीह
की नमाज़ पढ़ते हैं।
दलील भी मुलाहिज़ा फरमाएं।
सही मुस्लिम में उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा
रज़ियल्लाहु अन्हा रिवायत करती हैं कि आप (स.अ.व.) ने रात के हर हिस्से में
तहज्जुद की नमाज़ पढ़ी है। कभी शुरू रात में, कभी बीच रात
में और कभी आख़िर रात में।
सावाल 8: रमजान का चांद देखने पर तरावीह शुरू
करना
जवाब: क़यामुल्लैल केवल रमज़ान के चाँद के साथ
ही खास नहीं पुरे साल को शामिल है।
चूंकि रमज़ान के महीने में इसका सवाब और महीनो
से ज़्यादा हो जाता है,
रमज़ान में क़याम करना पिछले गुनाहो को मिटा
देता है,
इसलिए जिस तरह लोग रमज़ान शुरू होते ही दीगर
इबादतों में मशग़ूल रहते हैं इसी तरह क़यामुल्लैल में भी मशग़ूल हो जाते हैं।
सवाल 9: ईद के चांद पर तरावीह खत्म करना?
जवाब: यह तीसरे नंबर के सवाल का दूसरा रूप है, लेकिन इतना जान लें कि ईद के चाँद से क़याम का वह इनाम नहीं रह जाता जो कि
रमज़ान में था, फिर भी हम सब को रमजान या गैर रमज़ान दोनों में क़यामुल्लैल की एहतमाम करना
चाहिए।और अल्हम्दुलिल्लाह उम्मत में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो पैगंबर (सल्लल्लाहु
अलैहि वसल्लम) की इस सुन्नत का पूरे साल ख्याल रखते हैं।
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