अपने नाम के साथ मुहम्मद लगाना
वैसे नाम के लिए एक कलिमा ही काफ़ी
होता है जैसा कि नबी ﷺ का नाम मुहम्मद और दूसरा नाम अहमद है।हमारे यहां एक तरीक़ा यह भी
राइज है कि अपने नाम दो कलिमों पर मुश्तमिल रखते हैं।
अब यहां हमें यह देखना है कि नाम किस
तरह रखा जाए,इस सिलसिले में नाम रखने के इस्लामी उसूल वुज़ू अब त़ देखे जा सकते हैं।
इनमें से यह भी है कि नाम रखने में
अल्लाह की सिफ़ात की तरफ़ अब्दियत का इन्तिसाब,या अम्बिया और
सहाबा वग़ैरा के नामों पर नाम रखना बेहतर है ।
नबी ﷺ का एक नाम मुहम्मद है,कोई अपना नाम मुहम्मद रखे काफ़ी है।और अगर कोई दूसरा नाम रखे साथ में आगे
मुहम्मद लगा ले या पीछे अहमद का इज़ाफ़ा कर ले जो कि नबी ﷺ का दूसरा नाम है।तो इसमें कोई हर्ज नहीं है बल्कि
नबी ﷺ से मुहब्बत का इज़हार है ।
साथ ही एक कोशिश यह भी हो कि ऐसे
पाकीज़ा नाम रखने के बाद मासियत के कामों से बचता रहे। नाम मुहम्मद हो और बुराई करे
तो यह ज़ेब नहीं देता।वैसे इन्सान से ख़ता का इम्कान है मगर ख़ता पे इसरार यह बड़ा
गुनाह है ।
अल्लाह तआला ही नेकी की तौफ़ीक़
बख़्शने वाला है ।
मक़बूल अहमद सलफ़ी
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