جمعرات، 28 اپریل، 2016

आप के सवालों के जवाब

आप के सवालों के जवाब
(1) सवाल:फ़ातिहा किया हुवा खाना कैसा है ?
जवाब:आज कल फ़ातिहा ख़्वानी की रस्म बिल्कुल तक़रीब की शक्ल इख़्तियार कर लिया है,इसका सबूत नबी और अस्हाब नबी से नहीं मिलता जिसकी वजह यह बिदअत क़रार पाएगी।इस लिहाज़ से इसका खाना भी जाएज़ नहीं होगा।
(2) सवाल:हिन्दू के घर का खाना खा सकते हैं जबकि वहां हराम माल का पक्का होता है ?
जवाब:वह हिन्दू जो हराम कारोबार करता हो इस हराम कमाई से दावत खिलाए तो नहीं खाना चाहिए मगर सभी हिन्दू हराम कारोबार नहीं करते।तो अगर ऐसा हिन्दू दावत करे जिसकी कमाई हराम ज़राए का ना हो तो इसकी दावत में शिरकत कर सक्ते हैं।याद रहे यह दावत हिन्दुओं की मज़्हबी ना हो और ना ही खाने में हराम अश्या का इहतिमाम किया हो।

(3) सवाल:जब हम सफ़र पे हों और जुमा की नमाज़ अदा करनी हो तो तहिय्यह अलमसजद वाजिब होगी क्योंकि जुमा के दिन इसकी सख़्त ताकीद वारिद है ?
जवाब:मुसाफ़िर पे जुमा की नमाज़ फ़र्ज़ नहीं है लेकिन अगर जुमा पढ़ना चाहे तो पढ़ सकता है।तहय्या अलमसजद का हुक्म सुन्नत है और इसका ताल्लुक़ जुमा से नहीं है बल्कि मस्जिद से है जब भी मस्जिद आए तो तहिय्यह अलमसजद पढ़ना चाहिए चाहे जुमा का दिन हो या कोई और दिन व वक़्त ।
(4) सवाल:क्या खड़ा होकर पानी पीना हराम है जैसा कि एक हदीस में सख़्त मुमानिअत पाता हों ?
जवाब:ज़रूरतन खड़े होकर पानी पीना जाएज़ है और रसूलुल्लाह से खड़े होकर पीना साबित है मगर आदतन खड़े होकर पानी पीना नहीं चाहिए ।
(5) सवाल:अरबी के कौन कौन से महीने में उमरा करना अफ़्ज़ल है ?
जवाब:एक हज का उमरा है जो हज के महीनों में अदा किया जाता है इसका ताल्लुक़ हज से होता है।इसके अलावा रमज़ान में उमरा करना हज के बराबर सवाब मिलता है।बक़िया महीनों में उमरा करना बराबर है। बअ्ज़ लोग रजब के महीने में उमरा करना अफ़्ज़ल मश्हूर किए हुए हैं मगर इसकी कोई हैसियत नहीं।
(6) सवाल:मस्जिद में सुन्नत या नफ़्ल नमाज़ पढ़ते हुए फ़र्ज़ नमाज़ की इक़ामत हो जाए तो इस हालत में किया करें ?
जवाब:नबी का फ़रमान है कि जब फ़र्ज़ नमाज़ की इक़ामत हो जाए तो कोई नमाज़ नहीं।इसलिए हमें इस हालत में अपनी नमाज़ तोड़ के फ़र्ज़ नमाज़ में शामिल हो जाना चाहिए ।
(7) अहले तशीअ् किन दलाइल की बुनियाद पे क़ियाम में इरसाल (हाथ ना बांधना) करते हैं ?
जवाब:अहल ش इ अ़ नमाज़ में इरसाल करने से मुताल्लिक़ ज़ईफ़ व मौज़ू रिवायात पेश करते हैं।हमें शीआ के अमल से कोई लेना देना नहीं।हमारे लिए मुहम्मद अरबी का अमल ही नमूना है जो सहीह अहादीस़ से साबित हो।आप नमाज़ में क़ियाम की हालत में सीने पे हाथ बांधा करते थे ।
(8) सवाल:क्या हर रक्अत के शुरू में तअव्वुज़ व तस्मियह का पढ़ना ज़रूरी है या सिर्फ़ तस्मियह काफ़ी है ?
जवाब:तअव्वुज़ व तस्मियह सूरह फ़ातिहा के शुरू में पहली रक्अत में पढ़ना सुन्नत है और दीगर रकातों में नहीं पढ़ना है।लेकिन अगर कोई हर रक्अत में तअव्वुज़ व तस्मियह पढ़ता है तो इसमें कोई हर्ज नहीं।हाँ अगर किसी रक्अत में कोई मुस्तक़िल सूरत पढ़े तो वहां तस्मियह पढ़ना मशरूअ् है ।
वल्लाहु अअ्लम बिस्सवाब

वाट्स अप ग्रुप"इल्मे दीन"के सवालात और मक़बूल अहमद सलफ़ी के जवाब

کوئی تبصرے نہیں:

ایک تبصرہ شائع کریں